(८)
द्वितीय सर्ग।
१
उस समय महा बलवान निशाचर तारक,
त्रैलोक्य जीत कर, हुआ देवसंहारक।
भयभीत अमरगण किये इन्द्र को आगे,
इसलिए पितामह पास गये सब भागे॥
२
जब उन मलीन-मुख-युक्त सुरों के सम्मुख,
वे हुए प्रकट, कर कृपा, कृपालु चतुर्मुख
रच रुचिर पद्य इस भाँति, भक्तिरस साने,
तब, शीश नाय, सुर लगे ब्रह्मगुण गाने
३
थे सृष्टि आदि में तुम्ही अकेले स्वामी!
कर जोड़, भक्तियुत, तुम्हें नाथ! प्रणमा
रज, सत्व, तमोमय भेद, अनन्तर, तीन,
कर, भिन्न भिन्न वयमूर्ति हुए, स्वाधीन॥
४
जल-बीच, प्रथम, निज बीज तुम्हीं ने डाला,
अतएव तुम्ही से हुआ चराचर-जाला।
विधि, विष्णु, रुद्र आकार, यथाक्रम, धारी,
उत्पादक, पालक तुम्ही, तुम्ही संहारी॥
५
तुमने ही जनविस्तार-हेत असुरारी!
निज तन के हैं दो भाग किये नर-नारी।
जब सोते हो तुम नाथ! प्रलय होती है;
अगते हो जब, तब सृष्टि बीज बोती है॥