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१६


ऐसा करो उपाय जाय कर, हे रतिनायक बड़भागी!
हो जिससे पवित्र गिरजा में योगीश्वर हर अनुरागी।
उनके योग्य कामिली-कुल में वही एक गिरि-बाला है;
सत्य वचन ब्रह्मा ने अपने मुख से यही निकाला है॥

१७


जहाँ हिमालय ऊपर हर ने तपःक्रिया विस्तारी है,
गिरिजा वहीं पिता की अनुमति से सेवार्थ सिधारी है
यह संवाद अप्सराओं से सुन पाया मैंने सारा;
भेद जान लेता हूँ सब का सदा इन्हीं के ही द्वारा॥

१८


अतः सुरों की कार्यसिद्धि के लिए करौ अब तुम प्रस्थान,
इसे करेगी सफल उमा ही; इसमें कारण वही प्रधान।
तू भी है तथापि इस सब का हेतु अपेक्षाकृत बलवान्;
उग आने के पहले, आदिम अङ्कुर के जलदान समान

१९


सकल सुरों की विजय-कामना के उपाय हैं हर,उन पर,
शर तेरे ही चल सकते हैं, बड़भागी है तू अतितर।
अप्रसिद्ध भी कार्य, और से हो सकता जो कभी नहीं,-
उसके भी करने में यश है; यह तो विश्रत सभी कहीं॥

२०


ये सब सुर तेरे याचक हैं; गति इनकी कुण्ठित सारी;
है तीनों लोकों का मन्मथ! काय महामङ्गलकारी।
तव धन्वा के लिए काम यह नहीं निपट घातक भारी;
तेरे तुल्य न वीर और है; अहो विचित्र-वीर्यधारी!

२१


ऋतुनायक तेरा सहचर है सदा साथ रहने वाला;
बिना कहे ही तुझको देगा वह सहायता, इस काला।