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पृष्ठ:कुरल-काव्य.pdf/७

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प्रस्तावना

परिचय और महत्व

'कुरल' तामिल भाषा का एक अन्तरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त काव्यग्रन्थ है। यह इतना मोहक और कलापूर्ण है कि संसार दो हजार वर्ष से इस पर मुग्ध है। यूरोप की प्रायः सब भाषाओं में इसके अनुवाद हो चुके हैं। अंग्रेजी में इसके रेवरेण्ड जी॰ यू॰ पोप कवि, वी॰ वी॰ एस॰ अय्यर और माननीय राजगोपालाचार्य द्वारा लिखित तीन अनुवाद विद्यमान है।

तामिल भाषा-भाषी इसे 'तामिल वेद' 'पंचम वेद' 'ईश्वरीय ग्रन्थ' 'महान सत्य' 'सर्वदेशीय वेद' जैसे नामों से पुकारते हैं। इससे हम यह बात सहज में ही जान सकते हैं कि उनकी दृष्टि में कुरल का कितना आदर और महत्व है। 'नालदियार' और 'कुरल' ये दोनों जैन काव्य तामिल भाषा के 'कौस्तुभ' और 'सीमन्तक' मणि हैं। तामिल भाषा का एक स्वतन्त्र साहित्य है, जो मौलिकता तथा विशालता में विश्वविख्यात संस्कृत साहित्य से किसी भी भांति अपने को कम नहीं समझता।

कुरल का नामकरण ग्रन्थ में प्रयुक्त 'कुरलवेणवा' नामक छन्द विशेष के कारण हुआ है, जिसका अर्थ दोहा-विशेष है। इस नीति काव्य में १३३ अध्याय है, जो कि धर्म (अरम) अर्थ (पोरुल) और काम (इनवम) इन तीन विभागों में विभक्त है और ये तीनों विषय विस्तार के साथ इस प्रकार समझाये गये हैं जिससे ये मूलभूत अहिंसासिद्धान्त के साथ सम्बद्ध रहे। पारखी तथा धार्मिक विद्वान् इसे अधिक महत्व इस कारण देते हैं कि इसकी विषय-विवेचन-शैली बड़ी ही सुन्दर, सूक्ष्म और प्रभावोत्पादक है। विषय-निर्वाचन भी इसका बड़ा पाण्डित्यपूर्ण हैं। मानव जीवन को शुद्ध और सुन्दर बनाने के लिए जितनी विशाल मात्रा में इसमें उपदेश दिया गया है उतना अन्यत्र मिलना दुर्लभ हैं। इसके अध्ययन से सन्तप्त-हृदय को बहुत शांति और बल मिलता है, यह हमारा निज का भी अनुभव है। एक ही रात्रि में दोनों नेत्र चले जाने के पश्चात् हमारे हृदय को प्रफुल्लित रखने का श्रेय कुरल को ही प्राप्त हैं। हमारी राय में यह