पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/१०७

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कुसुमकुमारी। (अट्ठाईसवा --और वह यह है कि एकवना' मारे से करीब ही है तो जप कि बाबाजी ने आपको नदी किनारे पाया था तो उन्हों ने आपको मा पहिचाना न होगा?" भैरोसिंह,-"नहीं, उन्होंने मुझे नहीं पहचाना था। मुझे भी इस यात का अचरज है कि यद्यपि धन के गर्व और कुकर्म के कारण बाबालोगों पर श्रद्धान रहने के कारण मैं उन बाबाजी को नहीं जानता था, लेकिन बाबाजी तो मुझे जानते या पहिचानते होंगे ? पर नहीं, कदाचित् वे मुझे न पहिचानते हों, या उस समय उन्होंने इस बात पर कुछ ध्यान ही न दिया हो ! और मुझे यह निश्चय है कि बाबाजी ने मुझे कदापि न पहिचाना होगा, क्योंकि मेरी तेरही के दिन वे बाबाजी भी अपनी जमात के साथ न्योते में आए थे और मेरे मरने पर बहुत अफ़सोस जाहिर करके चुन्नी को उन्होंने ढाढ़स दिया था। "हां, तो, मुझे जिन चार-पांच मादमियों ने बेकाबू करके चुन्नी की मदद की थी, उनमें से एक तो यही झगरू ओस्ताद था, जो अब कालेपानी की हवा खाने गया; और दूसरे उन चारों का पता भी मैंने पाया; पर कुछ दिन के बाद, और बड़ी बुरीहालत में जिसका हाल मैं आगे चलकर कहूँगा।" कुसुम,-"ऐं ! उन बदमाशों में भगरू भी शामिल था?" भैरोसिंह,-"केवल इतना ही नहीं, बरन पीछे तो मैंने यह जान लिया कि मेरी जान झगरू ही के कारण लो गई थी ! सबब इसका यह था कि वह फ़ाहिशा चुन्नी झगरू लौंडे पर आशिक होगई थी, और दोनों के प्यार में मैं कांटा था, इसीलिये मेरे पेट में छुराभोंका गया था! “पोछे जब मैंने उस कम्बर की नौकरी करलो, तब देखा कि वह मेरी ही दौलत से ऐयाशी करती और रात दिन उस साजिन्दा के लौंडे ( झगरू) को लिये पड़ी रहती है! "निदान, फिर तो कुछ दिन के बाद चुन्नी खुल खेली और उसने कई उल्लू के पट्ठों को चूस चास कर बर्बाद कर डाला और बहुत कुछ माल मता बटोरा, पर सच्चा प्यार उसका झगरू के साथ ही बराबर रहा! यद्यपि वह कई बड़े बड़े ज़िमीदारों के पास रही थी, पर उसका काम यही था कि तमाशबीनों को उल्लू बनाकर उनसे माल मंसमा और भगक के साथ ऐश करना 'प्राय दुरुमही रशियों का