पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/१०९

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कुसुमकुमार। (महाईसवा "बस फिर तो मैं रम फिक में लगा कि किसी ढव से सुरम की तालीले लेनी चाहिए! इसी कोशिश में कई महीने बीत गए, पर मेरी घान न लगो; क्योंकि न तो मैने उस सुरग को ताली ही चुन्नी के पास देखी और न कभी उसमे से जाते ही देखा ! इसका यही साथ होगा कि वह झगरू से उस सुरग को छिपाया चाहत्ती हो। ___" बर्सात का मौसिम था, चुन्नी अपने (या मेरे ! ) बाग में अकेली थी और झगरू किसी काम से पटने गया हुआ था, इसलिये चुन्नी के पास वह मौजूद न था ! बाग मे दाई-चाकर उस दिन दा ही चार थे और माली भी छुट्टी लेकर उस दिन कहा चला गया था! इस मौके को मैन गनीमत समझा और मैं घात में लगा रहा कि आज सुरंग की ताली लेने की पूरी कोशिश की जाय और यों न बने तो उस हरामजादी चुन्नी की छातो पर चढ़ कर जबर्दस्ती उससे ताली लेलो जाय; अगर इसमे बुन्नी को मार डालना भी पड़े तो कोई चिन्ता नहीं ! पर मुझे यह सब कुछ भी न करना पड़ा और इसी दिन बड़ा आसानी से सुरंग को ताली मेरे हाथ लग गई! "उस ताली की घात में तो मैं लगा ही हुआ था, सो, मैने उस दिन चुन्नो के हाथ में सुरग की ताली देखी और उस दिन उसके हाथ में ताली रहने का सबब भी समझ लिया! उस दिन बाग में बिल्कुल निराला था, झगरू भी न था, इसलिये आश्चर्य नहीं कि असने सुरंग में जाने के लिये ताली अपने हाथ में ली हो और जाने का मौका ढूंढ रही हो! चाहे जो कुछ हो, पर इतने दिनों के बाद उस प्यारी ताली को देखकर मुझे बहुत खुशी हासिल हुई और मैने उसके लेलेने के लिये अपनी घात लगाई! ___चुन्नी ने जल्द ब्यालू तयार करने के लिये रसाईदार से कहा. जिसका मतलब मैं समझ गया कि, 'यह फ़ाहिशा जल्दी जल्दी नावे पीने से फरागत हो, सबके सो जाने पर सुरग में जानेवाली है ! यह समझ कर मैंने किसी ढब से रसोईदार की आंख बचाकर बांटे में एक बेहोशी की बुकनी डालदी और फिर अलग होकर चुन्नी या साली पर घात लगाए रहा! "ज्यालू नयार होने पर पहिले चुन्नी ने खाया, फिर सारे दाई- करों ने खाया | मैंने अपनी बालुले और लोगों को आंख बचा- सामीमो में उसेवा दिया और वे पैर सुधाकसानवाले कमरे