पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/११०

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स्वर्गीयकुभुम । की ओर मैं पहुंचा! वहाँ जाकर क्या देखता हूं कि चुनी पलंग पर बहोश पड़ी हुई है ! फिर तो मैने एक एक करके सब नौकर-दाइयों को देखा और सभी को भरपूर बेहोश पाया । तब मैंने यह समझ कर कि, 'अब ये कंबख्त सुबह के पहिले कभी होश में न आयेंगे, धुनी के कमरे में जाकर उसके आंचल से सुरंग की ताली खोल ली आर जगदीश्वर को इसके लिये कोटि-कोटि दंडवत प्रणाम किया। "जिस समय मैंने तालो अपने कबज़ में की थी, उस समय रात के बारह बजे थे। बस, चटमैं हम्माम में पहुंचा । रोशनी का सामान मेरे पास था, इसलिये भीतर जाकर मैने मोमबत्ती जलाई और पहिले तुम्हारे इस शयनागार की ओर मैं माया और उस जगह खड़े होकर मैने दो बंद आंसू गिराए, जहां पर मेरे पेट में छुरी मारी गई थी! फिर उधर के सह खटके और ताले बद कर के और वहांसे धापस आकर मैं कुएं को और गया और उधर के मोमब खटके और ताले भरकर गांगी नदी की ओर वाली सुरंग की शोर मैने पैर बढ़ाया। किन्तु हा ! उधर की ओर का दर्वाजा खोलते ही ऐसी दुर्गन्धि साई कि मैं घबरा उठा और बड़े कष्ट ले अपने तई सम्हाल कर उधर की बोर चला। "यद्यपि इस सुरंग में ऐसी कारीगरीकीगई है कि इसमें बाहर से बराबर हवामाया जाया करती है, पर खेद है कि यह बात पिताजा से न तो मैने ही पूछी और न उन्होंने हो चतलाई ! पीछे मैंने इस बात के मेद जानने को बहुत कुछ कोशिश की, पर कुछ भी मेरी समझ में न आ या! "निदान, मैं रोशनी लिये हुए उससुरंग के अंदर घुसा और भागे बढ़ता गया। ज्यों ज्यों मैं आगे बढ़ता गया,त्यो त्यों बदबू भी बढ़ती ही गई ! अन्त में मैने आगे जाकर क्या देखा कि, 'तीन अभागों की लाशें वहां पर पड़ी हुई हैं !" कुसुम,-"जान पड़ता है कि वे लाशें उन्हों कंबख्तों की होगी. जिन हत्यारों ने आपके ऊगर---" भैरोसिंह,-"तुमने बहुत ठीक समझा! मेरे ऊपर भागरू मिला- कर पांच आदमी अपटे थे! उनमें से एकतो चुन्नी का यार मगर ही था, बाकी के चार आदमियों में से तीन की लाशें मैने सुरंग में देनों और पौया मादमी, "नाही किमार ने बाद मेरी