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पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/१२१

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११२ स्वगायकुसुम (तोसवा -- पुरजे को पढ़कर अपवा कुल हाल जान लिया था और फिर मैंने अपने धर्म बचाने की जैसो प्रतिज्ञा की थी, और उले जहां तक निबाहा, यह भी मैं कह चुको हूं। अब इसके आगे सुनिए,--- भैरासिंह,--"हो, तुम कहती चलो, मैं सुन रहा हूं।" कुसुम,-"झगरू ही के कारण आपको जान ली गई, ऐसा आपने कहा है। ठीक है, उसके साथ चुनी का जो कुछ खोटा बर्ताव था, यह भी मुझसे छिपा नहीं था; और न जाने क्यों, मैं उस पर बराबर अपनी नफ़रत ही जाहिर करती रही। वह कंचन रात दिन इसी उद्योग में लगा रहा कि, क्योंकर कोई गांठ कापूरा, आख का अन्धा और मति का हीन उल्लू जाल में फंसे कि गहरी रकम हाथ लगै!' और उसने तोड़-जोड़ लगाकर कई बार अच्छ-अच्छे असामी पक्के भी किए, पर अपने हाल जान लेने और अपनी प्रतिज्ञा पर कायम रहने के कारण वह या चुन्नी मेरे धर्म को न बिगाड़ सके । यद्यपि अपना भीतरी हाल या इच्छा मैंने चुनी पर नहीं जाहिर की थी, और न उससे यही कहा था कि 'मैं अपना सारा हाल जान गई है;' पर बात यह थी कि जब मेरी सिग्लैंकाई की बात जोर पकड़ती, तथा किसी न किसी ढंग से अपने तई ऐसी बीमार बना लेती कि महीनों खाटन छोड़ती; बस, इस बीच में सारा रोल खरमंडल हो जाता। चुन्नी पर मैंने यह बात भली भांति से प्रगट कर रखी थी कि, "मैं अभी निहायत ही कमज़ोर, कमसिन और किसी काम के योग्य नहीं ई। इसके अलाचे मन ही मन मैंने यह प्रतिज्ञा भी कर रखी थी कि, 'जब मैं देखंगी कि अब किसी ढब से मेरा धर्म नहीं बच सकता, तो जहर खाकर अपनी जान देदूंगी।" भैरोसिंह,-"हां तो फिर ?" कुसुम,-"कहती हूं, जब मैं तेरह बरस की हुई थी, उसी साल बिहार के उन्ही राजा ( मेरे पिता के लड़के (मेरे सहोदर भ्राता) की शादी में नाचने का बीड़ा मेरी मां ने लिया; क्योंकि वह तो मेरे या मेरे पिता के बारे में कुछ जानना ही न थी। क्योंकि अगर वह मेरा हाल कुछमी जागतो होती तो वह हर्गिज वहांके चीडालेने या वहां जाने का कभी सपने में भी इगदान करती।" मैरोसिंह ऐसा ? " कुसुम, जाहा और वहा जान का नाम सुनकर मेर ऊपर गाया