परिच्छेद) कुसुमकुमारी। ११३ बिजली घहरापड़ी! मैने मन ही मन सोचा कि हाय. आज खोटो किस्मत ने यह दिन भी दिखलाया कि मैं अपने ही सो भाई की शादी में नाचने जा रही हूं ! हे राम' यह बात सुनने हो मेरी बुरी हालत हो गई और मैं मछली की तरह तड़पने लगी; पर साथ ही यह भी जी में आया कि चाहे जो हो, पर एक नजर जरा अपने मा, माप और भाई बहिन को तो देख लं।" भैरोसिंह ने काट कर कहा,-"बेटी, कुसुम ! बल करो. रहने दोः क्योंकि हमारे कलेजे में अब इतनी ताकत नहीं रही है कि वह तुम्हारे इस दर्दनाक किस्से को सुन सके हा'--" इतना कहते कहत कुसुम और बसन्त के हजार रोकने पर भी वे न रुके और चले गए। कुसुम की जीवनी का सिलसिला भी यदी पर रह गया और उसने बसन्त से यह कह कर अपने इस किम्मे को उस समय बद रक्खा कि, 'यह हाल फिर भैरोसिंह के सामने ही कहा जायगा।' रात को कुस्सुम ने भैरोसिंह को फिर बुलाया, पर उस समय उनका कही पता न लगा। दूसरे दिन, दो पहर तक जब भैरोमिह अपनी कोठरी के बाहर न हुए और बाहर से लोगों के बहुत पुकारने पर भी जब भीतर से कुछ न बोले, नब लोगों ने घबरा कर इस बात की खबर कुसुम को पहुंचाई। यह सुनते ही बसत को साथ लिये हुए कुसुम भैगसिह की कोठरी के पास आई और उसके जाने पर भी जब बहुत कुछ पुकारने पर भीतर से भैरोसिंह ने कुछ जवाब न दिया, तब तो कुसुम का माथा ठनका । उसने तुरंत किवाड़ चिरवाया, और किवाड़ चिर जाने पर भीतर पलंग पर भैरासिह की लाश पाई गई ! हा. उनकी यह दशा देखकर कुसुम के सुकुमार कलेजे पर कैसी चोट पहुंची होगी, इसके लिखने में हम असमर्थ है ! निदान. जब डाक्टर की जांच से यह साबित हुआ कि भैरोसिंह ने जहर खाकर अपनी जान देदी है, और प्राण को निकले दो पहर से भी ज़ियादह वक्त हो चुका है, तब फिर क्या हो सकता था ! बेचारी कुसुम ने रो-पीट-कर ब्राह्मण के द्वारा उनका चिधि-पूर्वक संस्कार करवाया और उनके क्रिया-कर्म मे इतना कुछ खर्च किया पि जितना उस सारी सम्पत्ति क असल मालिक भैरा सिंह काल्ये
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