पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/१२३

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११४ म्वगायकुसुम तोसमा किया जाना उचित था। क्रिया-कर्म के कामों से छुट्टी पाकर कुसुम ने भैरोसिह के नाम पर एक बड़ा भारी विष्णु-पंचायतन-मदिर और तालाब बनवा कर दो हजार रुपये साल की ज़िमीदारी के साथ 'एकवना' के उन्हीं बाबाजी को भेंट कर दिया, जिन्होंने भैरोसिंह की जान बचाई थी: पर बाबाजी इस बात या भैरोसिंह के असली भेद को नो जानते ही न थे, इसलिये एकाएक इतनी संपत्ति के पाने से वे बहुत ही चकित हुए ! केवल बाजी ही नहीं, वरन भैरोसिंह का असली हाल कुसुम और वसंत के अलावे और कोई नहीं जानता था; क्योंकि जब उन लोगो में बातें होती, नय वहां पर किमीके रहने का हुक्म नहीं था। यही कारण था कि भैगमिह के काम में इतना खर्च और ऐसी धूम देखकर लोग हैगन थे कि एक अदने प्यादे के कर्म में कुलुम ने लाग्य पचास हजार रुपये क्यों लगा दिए!!! भैरोसिंह के पलंग पर एक बंद लिफ़ाफ़ा कुसुम ने अपने नाम का पाया जिसे तुरंत खोलकर उसने पढ़ा और बसन्तकुमार को भी दिखलाया । उसमें यही लिखा था- "वेटी ! कुसुम : नेगी जीवनी ने मेरे दिल के साथ यह काम किया कि जो जहरखुमी छुरी कलेजे के माथ करती है ! बैर, मेरे पापरूपी जीवन का पर्दा इस भांति गिरेगा, यह कौन जानताथा।मैं तेरी वह मलाह भी सुन चुका है, जो कि तूने मेरी सारी दौलत सुझे लौटा देने के बारे में बसन्तकुमार के साथ की थी; और इसीलिये मुझसे एक बात मानने की प्रतिज्ञा भी तू करातो थो; पर सुन, बेटी ! आज मैंने अंत समय में अपने जी से तुझे अपनी सारी दौलत दान कर दी ! तू मेरे लिये खेद मन करियो, ईश्वर करे, बसन्त के साथ, कुसुम ! तेरा कभी वियोग न हो। आशीर्वादक- भैरोसिह भैरोसिंह के दुःख मे महीनों तक कुसुम की धुरी दशा रही और सबमे बढ़ कर तो उसके दुःख का कारण यह था कि वह अपने ही का मैरामिह की जान रन का हेतु समझती था