पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/१२६

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परिच्छेद ) कुसुमकुमारी। बत्तीसवां परिच्छेद. विवाह की बात। "मामान्या-सझसम्बन्धाज्जाताह लोकगर्हिता। तस्मात्सन्ततिकामरत्व करू दार-परिग्रहम् ॥” (कन्दपकलि-नाटके) MAY शाख कामहीना था, चटक चादनी और मंद मद पवन बाग के चबूतरे पर बैठे हुए, दो प्रेमियों के गर्मी के ताए को दूर कर रहा था। उस समय रात के नौ बजे AAR होंगे. जब अपने बाद में चबूतरे पर बसन्तकमार की गोद में सिर रख कर लेटी हुई कुसुम रह-रह-कर बसंत और चाद की ओर देख देखकर मुस्कुराती और कुछ सोचती जाती थी। वमन्त ने चांदनी मे चमकते हुए उसके गालों को चूम कर कहा,- "पों प्यारी ! क्या तुम चाद की चमक से मेरे मुखड़े का मेल मिला रही हो !" कुसुम,--( उस चुम्बन का बदला लेकर ) " नहीं प्यारे ! उम्म कलंकी चांद से तुम्हारे निष्कलंक मुख की चमक कही बढ़कर है। इमी बात पर मैं मुस्कुराती और इस कलमुहें चांद को मन ही मन विकारती थी।" सन्त.-" वाह, वाह ! तब तो नुमने मेरी जवान की लगाम को दूसरी ही और फेर दियाः क्योंकि अभी मैं तुम्हारे प्यारे मुखड़े की उपमा चांद से दिया ही चाहता था!" कुसुम,-"मो तुम खुशी से दे सकते हो, क्योंकि मेरा कलंकित मुख उस कल की बाद की बराबरी करेनो शायद करनी सकता यो कहकर उमने एक उढी , सांस ली और बसन्त ने ताज्जुब से कहा, "ऐं ' ८ ! खैर नो है? यह ठंडी माम किसलिये ? मेरी प्यारी : तुम्हाग मुख कलंकित कैसे है ?" कुसुम प्यार वेश्या क घर पली हर मुम मा कवक