पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/१६

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कुसुमकुमारी


और दो साजिन्दह थे। हरिहरक्षेत्र में पहुंचने के समय एक किश्ती से टकर खाकर मेरी डोंगी उलट गई, फिर कौन किधर गया,इसका कुछ पता नहीं। थोड़ी देर में मेरे सिर के बाल किसीने पकड़े, उस समय मैं उससे लपट गई; यहां तक कि उसी लपटाझपटी में मेरे पैर के छड़े, कमर की करधनी, गले की सोने की सिकरी और बदन की साड़ी तक न जाने कहां की कहां गई ! फिर मैं बेहोश होगई और होश में आने पर मैंने डाकृरसाहव से सुना कि ये ही महात्मा ( उस मर्द की ओर उंगली उठाकर ) मेरे साथ वेहोश या मुर्दे की हालत में पाए गए, जिन्हें मैं अपनी जान बचानेवाला समझती हूं।"

मजिष्टट,-" उन सबका नाम टुम बटला सकटी हौ?"

कुसुम,-"जी हां! मेरी मां का नाम चुन्नी था-"

मजिष्ट्रट,-(उसे रोककर)" क्या टुम इटाढ़ी की ज़िमीदारिन और मशहूर रंडी चुन्नी की लड़की है ! "

कुसुम,-" जी हां, हुज़र ! "

मजिष्ट्रट,-"हमको यह सुनकर, कि'चुन्नी डूब गई, निहायट अफ़सोस हुआ! हम जब आरा का मजिष्ट्रट था, तब हमारा इजलास में उसके इलाके का मुकड्डमा बराबर होटा ठा। हम उस को खूब जानटा है, वह बड़ी नेक रंडी ठी । अच्छा और कौन कौन डूबा?"

कुसुम,-" एक मजदूरनी, जिसका नाम झारी था और दो नौकरों में से एक का नाम उदित और दूसरे का नाम गनपत था। वह मजदूरनी और वे दोनों नौकर कहार थे। दोनों साजिन्दाओं में से एक का नाम भरोस और दूसरे का मिट्ठ था!"

मजिष्ट्रट, (जमादार की ओर घूमकर ) " टुम बड़ा नालायक आडमी है ! गज़ब खुडा का! छः छः रैयट डूबकर ला पटा होगया और टुम कुछ कोशिश नहीं किया! टुम नौकरी से अवी बर्टरफ़ किया गया। बस, चला जाच।"

यह सुनते ही बेचारे जमादार की मानों नानी मर गई ! अगर वह काटा जाता तो उसके बदन मे से खून न निकलता ! पर वह बेचारा क्या करता? लाचार, वह हटकर जरा दूर साहब के पीछे आ खड़ा हुआ