पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/१६७

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स्वगायकसुम। (अनचालासवा हवा सकसी। बस, इससे बढ़कर और कौन सी ऐसीबात है, जिसे मैं इस समय अपनी सफाई के बावत तुम्हारे आगे पेश करूं?" ज्यम्बक की साफ़, सञ्चो और खरी बातें.जो उसने खुले दिल से कही थी, सुनकर कुसुम सचमुच बहुत ही खुश हुई, उसके दिल का सारा मलाल जाता रहा और उसने बड़ी सादगी के साथ ज्यम्बक से कहा,-"बेशक, इस समय आपने जोक छ कहा है, वह बिल्क ल सही है, पर फिर भी मैं तो यही कहूंगी कि, देवोत्तर सम्पत्ति दूसरे को देडालनी या उसे किसीके हाथ बेच डालना बहुत ही बुगा है। " ज्यरक्षक ने कहा, "यह कौन कहता है कि बुरा नहीं है ? बुरा या-इम्मे ना अब मैं बहुत ही बुरा समझता हूं और इसके बारे में ता मैं अभी तुमसे यह कही आया हूँ कि, 'इतना पाए मेरा अवश्य है कि मैन देवोत्तर-सम्पत्तिपर हाथ डाला था और उसकी एवज़ में उस शैतान औरत से दो हजार रुपए लिए थे। और यह बात भी मैं अभी तुमसे कह आया हूं कि, 'मै तो अवश्य होगापाई और मेरे पापों का दण्ड मुझे श्रीजगदोश ने दे भी दिया है। जिसे तुम इस समय अपनी आंखों से देख भी रही हो। इसके अलावे, जय कि मैंने श्रीजगन्नाथजी की साक्षी देकर तुम्हारे आगे इस बात की फमम भी स्त्राई है कि तुम्हें उस स्त्री के हवाले करने के समय मेरे दिल में कोई बुरा खयाल न था. और में जान बूझ कर तुम्हें किसी रण्डी के हवाले नहीं किया था, तब फिर तुम उन बातों को अब नाहक क्यों दोहराती हो ? हां, मैन घोर पाप किया है, मैं पापी हूं. मैं अपराधी हूं, और मैं इस समय तुम्हारे शरण में आया हूं. इसलिए अब यदि तुम मुनासिब समझो तो अपने शरण में आए हुए एक दीन हीन पापी का (मेरा ) सारा अपराध क्षमा करो और सच जी से इसे (मुझे) मांफी दे दो। तुम यही समझ लो कि तुम्हारी किस्मत में भी यही लिखा था और मुझे भी यही कर्मभोग (अपने बदन के कोढ़ की ओर इशारा कर के ) भोगना बदा था; इलिये जो कुछ होगया है, वह तो अब लौट कर आसकता हो नहीं, तो फिर नाहक अफ़सोस करने से क्याहासिल होगा. ऐसी मेंमो तुम अपनेमाग्य को सगहों कि मेरे दिए हुए तम्मी और साबीन की मदद स तुमभपन सारे हास का जान सका मोर