परिच्छद) कुसुमकुमारी। सरना धर्म बचा सकी।" श्यम्बक की बातों से कुलमकुमारी की आंखों से चौधारे आंसू बहने लगगए थे, बसन्त की आंखें भी नम होगई थी, और यह पण्डा ( व्यस्वक) भी बहुत उदास हुआ था। थोड़ी देर के बाद कुसुम खुद-बखुन्द शान्न हुई और उसने त्र्यम्बक की ओर देख बहा दिलेरी के साथ कहा.-"पण्डाजी : देशक, आपकी बातों से इम वक्त मैं निहायत खुश हुई हूँ, और इस बात को तो मैं शुरूही से मानती आती कि, 'मेरे लिये श्रापका ख़याल कोई धुरा न था और आपने अपने जान मुझे एक गनी के ही स पुर्द किया था।' क्योंकि अगर आप मुझसे कछ दुश्मनों रखते होते तो मुझे वह सख्ती और तावीज़ क्यों देते और उनके जरिये से अपने हाल जान- लेने की मुझसे ताकीदही क्यों करते। इसलिये आपके इतने उपकार को मैं शुरु ही से माननी आती हूं और इस उपकार के बदले में आज में आपके साथ यह मलूक करती हूं कि आपके पाशानुसार आपको मच्चे जी से क्षमा करती हूं और माय ही श्रीजगदीश से भी यह विनती करती हूं कि वे भी अव आपके सब अपराधों को क्षमा करके आप पर अपनी दया इणि कर।" यह सुनतेही वह पण्डा कुसुम के पैरों पर गिरा ही चाहता था कि कसुम तेजी के साथ उठकर पीछे हट गई और बोली- "पण्डाजी. अब आप शान्त होइए, म्बन्ध होकर बैठिए और इनने उनावले न होइए । आप दगारे पितृकल के पूज्य पण्डा है, इस लिये आप मेरे भी पूजनीय है। इसके अलावे जब मैं छ: महीने की थी. जबसे मान बरम्मलों आपने मुझे पाला-पोसा था, इम नाते से भी आप मेरे पिता के समान हैं: इस लिए अब माष पिछली कल बातों को भूल जाइए। आप जगस्वस्थ होकर बैठिए. तो मैं और भी क छ थाने आपमे पूर्छ ।” क सुम की बातें सुनकर वह पण्डा पालकों की नाई ज़ोर-मार से गेने लगा और कुसुम नशा बसन्न के बहुन कुछ समझाने. बुझाने पर आधे घण्टे के बाद चुप हुआ और कहने लगा,-"बेटी, चन्द्रप्रभा : तू मानुषी नहीं, बरन साक्षात् देवी है। तकनी तुझमें इतनी सहनशीलना और नम्रता भरी हुई है अतएव तू सबमुख दश है 7 श्रीजगदीश का प्यारा सम्पत्ति है और तू मुसिमती
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