पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/१६९

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स्वगायकसुम । (उनमा सवा क्षमा है, इसका प्रत्यक्ष प्रमाण तेरी बाई बगल वाला चक्र है।" यह एक ऐसी बात इस मौके परज्यम्बक ने कही कि जिसे सुन कुसुम का खयाल किसी दूसरी तरफ खिंच गया और क छ देर तक वह सिर झुकाए हुई कुछ सोचती रही । इसके बाद उसने अपना सिर उठाकर त्र्यम्बक की ओर देखा और यों कहा,- "पण्डाजी, मैं आपसे यह पूछा चाहती हूं कि यह "देवदासी प्रथा कबसे चली और किसके द्वारा चलाई गई:" ज्यम्बक,--'इस विषय में मैं केवल इतना ही जानता और कह सकता हूं कि यह प्रथा बहुत पुरानी है। बस, इसके अलावे यह मैं नहीं जानता कि यह कबसे चली या किसके द्वारा चलाई गई। कसुम,-"अच्छा, आप यह बतला सकते हैं कि अब आप इसे अच्छी समझते हैं, या बुरी ?" ध्यम्बक,-"श्रीजगदीश ने मुझे घोर दण्ड देकर मेरी सांखें खोलदी हैं, इस लिए देश, काल और पात्र के अनुसार अव मैं इस प्रथा को इस घोर कलिकाल में प्रचलित रखना ठीक नहीं समझता चाहे यह चाल कभी चलाई गई हो, और न्ाहे इसके चलाने में कोई अच्छी बात सोची गई हो, पर अत्र जैसा विपरीत समय आपहुंचा है, उसे देखकर मैं यही उचित समझता हूँ कि अब यह प्रथा वन्द की जानी चाहिए।” (१) ___ कसम.-"यह बड़ी खुशी की बात है कि आप आपने इस चाल को बुरी समझा है।" म्बक,-"क्यों न समझ, जब कि मैं इसका दण्ड भोग रहा हूं। मुझे आशा है कि तुम्हारे परिणाम को देख कर तुम्हारे पिता राजा कर्णसिह ऐसे उत्तेजित हुए हैं कि, वे इस प्रथा को बिना बन्द कराए, कभी चैन न लेंगे। मैं भी यही चाहता हूं कि अब इस घोर कलिकाल में यह सत्यानाशिनी प्रथा बन्द होजाय तो अच्छा (१) केवल श्रीजगदीश ही नहीं, वरन दक्षिण भारत में भी ग्रह देवदासी प्रथा किसी ज़माने में बड़े जोरशोर से जारी थी. और अब मी विन्क ल बन्द नहीं हुई है सरकार यदि इस प्रथा को चन्द naduी 1 ओं का बहा लपकार हो