पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/२०१

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स्वगीयकुलम (संतालीसवा देना कि तेरी सहादरा बहिन कुसुम मरती बार तुझे बहुत बहुत आसीस देगई है ! खैर तो इतने दिनों तक मैने उससे ये सब बातें क्यों छिपाई ? इसीलिये कि, 'यदि गुलाब मेरा असली भेद और मेरी तुम्हारी-शादी का हाल न जानेगी तो मुझे एक मामूली रण्डी समझ कर बराबर मुझसे डाह किया करेगी और इस डाह का नतीजा यह होगा कि धीरे धीरे तुम उसके प्रेम में फंस कर मुझे छोड़ दोगे, तो मैं सुख से मर सकंगी! धन्यवाद है जगदीश्वर को कि उस दयामय की परम दया से मेरे असल मतलब को तुमने म समझ कर मेरा हाल गुलाब से कुछ न कहा और मेरे विचार के अनुसार गुलाब ने मुझे सचमुच अधम वेश्या जानकर मुझ पर अपनी घणा प्रगट की इससे मेरा मननीता होगया! मैं इस बात को बखूबी समझती हूं कि यदि गुलाम मेरा सारा रहस्य जान लेती तो यह निश्चय था कि तब वह मुझसे उसी तरह पेश आती, जैसे छोटी बहिन बड़ी यहिन के साथ पेश आती है ! परन्तु प्राणधन ! यह पात मुझे मजूर न थी,-अर्थात मैं इस अधम-दशा को पहुंच कर फिर इस संसार मे रहना नहीं चाहती थी । यदि यो मैं संसार से चल बसती तो, प्यारे ! तुम मेरे लिये बहुत ही दुखी होते, इसलिये मैंने तुम्हारी शादी कर दी। अब तुम मेरी जगह गुलाच को समझना और तुम्हे मैं लाख लाख कसम दिलाती हूं कि मेरे लिये सोच न करना। "प्राणप्यारे ! तुम्हें सुखी देखकर मैं मरती हूं, यही मेरे लिये अनन्त सुख है ! मैं ईश्वर से विनती करती हूँ कि वह दयामय तुम- दोनो का सदा मंगल करें और दीर्घजीवी होकर तुम दोनो आपस के सच्चे प्रेमसागर में डूबे रहो। प्यारे! तुम्हारा सुख देखकर मैं परलोक में भी सुखी होऊगी, गौर यह बात मैं जोर देकर कहतो हूं कि मेरा-तुम्हारा मिलाप परलोक में ज़रूर होगा और यदि दूसरा जन्म लेना पड़े तो मैं उस जन्म में भी तुम्हारीही अद्धांगिनी चनंगी। "जीवनसर्वस्व! तो आज ही मैने ऐसा क्यों किया? इसका एक कारण है, सुनो, जब मैंने यह बात भली भांति जानली कि, 'गुलाब तुम्हें मेरे पास आने देने की रबादार नहीं है, तब मैंने अपने कुच की ठहाई ! क्योंकि यही मैं चाहतीही थी। इसका सबक यह था कि जब तक मेरे पास तुम्हारा माना भसी माति न