पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/२०२

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परिच्छेन्) कसुमकुमारी। घटता, मैं अपनी इच्छा से कभी मर ही नहीं सकती थी। "प्राणापति ! गत को एक बजे यह पत्र लिवकर और अहे पलंग पर तुम्हारे लिये इसे छोड़कर और मानर से कमरे के मन दवाजे बंद कर मैंने मंम्बिया रवा ली है ! यद्यपि मैने महापाय किया है, ए मैं ऋचा भरती टाचार थी; कोकि इसके अलावे वेश्याओं के पाप का और कौनमा प्रायश्चित्त हाम्मना है यन्तु.प्यारे ! चाहे जो कुछ दो, किन्तु मुझे तुम अपनी शिवा की दाम जानकर मेरे मन अपराधी को पा करना कमी क रितुम न माने क्षमा करदागे. तो मेरी सान होनायगा भार परलोक में भी मुझे सुन मिळेना! सम्म, प्यारे । अन्त में तुमले मेरी यही स्निती है कि मेरा अग्निम्म्हार आदि क्रियाकर्म तुम स्वयं न कर वामपन हाथ में करवाना ! इसका सबब यह है कि मंग अमली हाल था मग तुम्हारा मंबंधी कोई जानता ही हो मन्दिय मेरे मम्बा आदि करने से लोग तुम्हें बहुत हा हेच समझे। मेरे काम-काज में मी बनुन कुन्छ खर्च-वच करने की कोई मावश्यकता नहीं है। अन्नने मेरा एक मह भी अनुरोध है कि यों तो मेरे मरने को वान छिपी न रहेगी और मेरे पिता भी यह हाल सुन ही लेंगे पर अमी तुम उनसे मरे परिणाम का हाल मत कहलाना. काकि मेरा हाल सुन चार उन्हें बहुत ही दुःख हंगा! पार, पारे ! तुम मुझे अपने जो से चिलकुल भुला देना. मेरे लिये जगभी उदास न ह'ना, मुझसे परलोक में मिलने की आशा बराबर बनाए रखना, और मेरे मारे अपनानी को क्षमा करना । मेरा यह त्र मेरी प्यारी बहिन गुन्लायदेई को याद न दिखाओ तो अच्छा हो, प्रमोंकि सच है कि शायद वह मेरे गुभ रहम्य का हाल जानकर उदान हो! बम अब विदा !!! प्यारे, विदा, बिदा!:हा:- तुम्हार्ग प्राणाप्यारी. कुममकुमारी"