सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/२०३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

स्वगीयकुसुम। (अडतालोसपा MIKA TV2LVETI24 ALLI SAN INE ONERSS अड़तालीसवां परिच्छेद, SAVETES RTENVERTE S3M TRana IAS 24TAASAATVCD ATIONALAYANANAN PETIMATAidinahat SITHCAN हमारा वक्तव्य " अयमविचारितचारुतया, संसारी भाति रमणीयः। अत्र पुनः परमार्थदशा, न किमपि सारमणीयः ॥ (संसारशर्वरी ) मारे पाठकों को विदित हो कि, उस दिन, जिस दिन, कि, यह घटना घटीथी, कुसम सरंग के रास्ते से आकर और सुरंग के भीतर ही से गुलाब और बसन्त का झगड़ा सुनकर लौट गई थी। वह झगड़ा वसन्त कुमार के साथ गुलाब का कुसम के पास जाने के लिये था, जैसा कि ऊपर हम लिख भी आए हैं । इसीसे उस दिन कुसुम बहुत ही उदास थी और उसी दिन उसने विष खाकर अपना खातमा कर डालने का निश्चय किया था !!! यह बात पाठको को समझ लेनी चाहिए कि जिस दिन कसम ने अपना असली हाल जाना था, उसी दिन से वह संसार से किनारा कर बैठी थी; परन्तु बसन्तक मार के उपकार के बदले चुकाने के लिये उसने अपने तई फिर संसार में फंसायो और बसन्तक मार को सच्चे जी से प्यार किया । उस प्यार का सच्चा बदला उसने बसन्तक मार से भी पाया और सांसारिक सुख का भोग क छ दिनो तक भोगकर अपने को धन्य माना; परन्तु कुछ दिनों तक भोगक्लिाम करने के बाद फिर उसके चित्त ने पलटा खाया और उसने अपने मन ही मन यह निश्चय किया कि, ' अपने प्यारे का विवाह कर और सारी दौलत ठिकाने लगा. अपने को इस संसार से अलग करदूं।' इसके बाद जब उसने अपनी एक क्वारी बहिन का होना सुना, तब तो वह बहुत ही प्रसन्न हुई और उसने अपनी सगी बहिन के साथ अपने प्राणप्यारे का व्याह कराकर अपने को संसार से अलग करने का निश्चय किया परन्तु अन्त में हुमा मा ? इसका हाल पाठकों को आगे चलकर आप ही आप विदित हाजायगा