पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/२०५

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स्वायकुसुम। कसम । ( उन्चासदा DO इस पाप के प्रायश्चित्त करने की कसम खाई ! उसने बसन्तकुमार को एक जंगलेदार कोठरी मे कई आदमियों की हिफ़ाज़त में बद किया और कुसुम की सेवा में वह स्वय दासी की भांति लग पड़ी। यद्यपि वैद्यजीन कुसुम के बचने की कोई गाशा गुलाब को नहीं दी थी, और यद्यपि कुसुम के मरने पर बलन्त के भी मचने की कोई आशानहीं की जासकती थी; तो भी वह (गुलाब) अपनी जान लड़ाकर कुसुम और बसन्त की ऐसी सेवा टहल करने लगी थी कि जैसी सेवा शायद कुसुम की बसन्त से, या बसन्त की कुसुम से भी न होसकती; क्योंकि गुलाब ने यह बात मन ही मन सोच रखी थी कि,--'जब तक इन दोनों के प्राण शरीर से सम्वन्ध रखने है, तब तक नो इन दोनों की सेवा करके मैं अपने पाप का प्रायश्चित करलं, क्योंकि फिर तो इन दोनो के मरने पर मुझे भी अपने तई इस दुनियां से मिदा ही देना होगा!' यहा सोच-समझ कर गुलावदेई जी-आन से उन दोनो की सेवा-टहल करने लगी थी। देखें, जगदीश्वर को गुलाब की सेवा, या कुसुम-बसन्त की दशा पर कुछ दया आती है या नहीं? कुसुमक म्हारी की चिट्ठी की लिखावट पढ़कर गुलाब बड़ी भूलभुलैयां मे पडगई थी। क्योंकि उसे अपनी किस्मी महोदरा भगिनी के मौजूद रहने का कोई हाल मालूम नहीं था और वह यह भी नहीं जानती थी कि, 'मेरी कोई बहिन कभी श्रीजगदीश भी चढाई गई थी!' इसके अलावे ग्यम्बक का नाम जो क बम की चिट्ठी मे आया था, उसका रहस्य भी वह नहीं जानती थी। यद्यपि अपने पिता के गण्डा त्र्यम्बक को वह जानती थी, पर उस (व्यस्व क ) से क सुम का क्या सम्वन्ध था. यह बात कमी नहीं समझी थी। इन नानों के अलावे "भैगसिंह के नाम सेना वह एक दम अलजान थी। फिर एक वेश्याक नुम के साथ अपने पनि (बसन्तक मार ) के व्याह करने की चात पढ़कर नो वह और भी घबरा गई थी. परन्तु इतना उम्मन अवश्य समझ लिया था कि मसूम हा न हा मेरा दिन जरूर छागी