परिच्छय) फुसमकुमारी। nun- पैर पकड़ कर कहा,“ मेरी प्यारी ! तुम देवी हो; क्योंकि मैंने तुम्हारे ही पुण्य से कुसुम को फिर से पाया है। इसलिये अब जो कुछ उचित जान पड़े, वह करी ।” इन बातों से गुलाब को आंग्यों में प्रेम के आंसू भर आप और उसने अपना पैर बैंच कर कहा.-"प्यारे, मेरे लिये मोअन पहिले जीजी (कसुनी हैं, और इनके पीछे तुम हो । फिर तो घर का पूरा-पूरा इन्तजाम करके तीसरे दिन गुलाश देई कुसुम और बसन्त को साथ ले, विहार---अपने मायके चली। उसके साथ दाई, चाकर, सिपाही, प्याद, रसोईदार आदि सव मिलाकर कोई तीस-चालीस भादमी चले और रास्ते में किसी खान की तकलीफ़न हो. इसका पूरा पूरा इन्तजाम कर लिया गया। अनूपसिह का प्यादा पहिले से ही बिदा कर दिया गया था कि वह जाकर पंश्तर ही सबके आने की खबर दे। कुसुम नो पालकी पर सफर कर रही थी और वसन्तकुमार के साथ गुलाब रथ पर सवार होकर कुसुम की पालकी के पीछे पीछे चलीधी। यद्यपि कुसुम ने अभी तक यह नहीं जाना था कि, 'हम लोग कहां जारहे हैं, पर बाहर के हवा-पानी से वह बहुत जल्द अच्छी होने लगी थी। यहां तक कि तीन-चार दिन के ही सफ़र में वह मापसे उठने और चहलकदमी करने लायक होगई थी। यहापर इतना और भी लिख देना हम उचित समझते है कि इन मफ़र में वसन्तकुमार अपने होश-हवास में ही रहा और धारे धीरे उसका सारा पागलपन जाता रहा। इसी बीच में उसने गुलावदेई से कुसुम का सारा जीवन-चरित. जिसमें भैरामिह का, ज्यम्बक का ओर निज का हाल भी शामिल था, या जो कुछ हाल इस उपन्यास में लिखा जा चुका है. सबसुना दिया । जिसे सुन कर गुलाव बहुत ही चकित हुई और उसने यह जान लिया कि, 'वास्तव मे कुसुम मेरी बड़ी और सहोदरा धहिन है !! गुलाब ने कहा,-.. हाथ, तो तुमने पहले ये सब बाते क्यों नहीं मुझ पर जाहिर की ? यदि मैं यह हाल जानलंती तो अपनी बड़ी बहन से ऐसी डाह क्यों करती?" इसका कुछ जवाव न देकर बसन्त ने एक लबी सांस लेकर अपमा माया ठोका और कहा, "हर हुए विना टलता नहीं है।
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