पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/८३

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स्वर्गीयकुमुम। (चौबीसथा सब बाग के भीतर पहुंच गए। ___उन सभोंको लिये हुए भैरोसिंह ने उसी हम्माम-धर में जाकर भीतर से दर्वाजा बंद कर लिया और कहा,-"क्या आपलोग समझ सकते हैं कि यहां पर मैं आपलोगों को क्यों लाया हूं?" उन सभों में से उसी सर्दार ने कहा, जिसके साथ अभी थोड़ी देर पहिले भैरोसिंह की बात-चीत हुई थी,-"यही तो हम भी पूछा चाहते थे!" भैरोसिंह,-"तो सुनिये, यहाँ पर एक तहखाना है और कुसुम की सारी दौलत, याने जर व जबाहिर यहीं पर हैं। सो उन्हें भी ले ही लेना चाहिए।" यह कहकर उसने पहिले की भांति हौज की रोटी बैंचकर सुरंग का रास्ता खोला और फिर मोमबत्ती लिये हुए सबसे पहिले वह उसमें धसा। उसे उतरते देख सर्दार ने कहा,-"मगर, भैरोसिंह ! " भैरोसिंह,-"घबराइए मत, बेखौफ चले आइए; अगर मैं दगा करूं तो आप फ़ौरन मुझे मारडालियेगा; क्योंकि मैं अकेला हूं और आप इतने जने हैं फिर आगा-पीछा क्यों करते है !" ___ यह सुनकर फिर तो भैरोसिंह के पीछे एक एक करके सब के सब उस सुरंग में उतर गए और सबके उतने पर भैरोसिंह ने नीचे एक चोखूटी कोडरी में पहुंचकर न जाने कौन सा खटका दबाया कि सुरंग का दर्वाजा खट्ट से बंद होगया! सर्दार ने कहा, "ऐं, यह क्या हुआ? " मैरोसिंह,-"डर क्या है ? मैं तो अकेला हूं और आपके साथ इतने आदमी हैं ! " सार,-( उसे रोककर ) "यह नहीं, अब यह बतलाओ कि वे जरो-जवाहर कहां हैं ?" भैगसिंह,-"जरा इस मोमबत्ती को लीजिए।" (यह कह- कर सार के हाथ में उसने मोमबत्ती दे दी और कहा-~) यह एक छोटा सा अजायबघर है ! भला, आप बतला सकते हैं कि इस कोठरी में दूसरी राह कहाँ पर है ?" सर्दार-(चारोमीर अच्छी तरह देखकर ) "ऐं यह तो संगीन स्थाह परपरों से बनी हुई मजबूत दीधार मालूम होती है और इसमें