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पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/८४

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परिच्छेद) कुसुमकुमारा। जिधर से मैं उतरा हूं, उसे छोड और कोई दूसरी गह नहीं देग्यलाई देती !" भैरोसिंह,-'मगर, नहीं; यहीं पर यह खज़ाना है ! अच्छा, मैं उसे खोलता हूं, आप ज़रा मोमबत्ती बाला हाथ ऊंचा करिए !" यह सुन सर्दार ने हाथ ऊंचा किया और भैरोसिंह ने न जाने कौन सा खटका दबाया कि सुरंगवाली सीढ़ी के दर्वाजे के टोक सामनेवाली दीवार को एक पटिया हलकी आवाज़ के साथ भीतर जा रही और फुर्ती के साथ भैरोसिंह उसके अन्द कूद गया। उसके कूदते ही वह पटिया ज्यों की त्यो बंद हो गई और सर्दार साहब अपने गरोह के साथ मोमबत्ती लिये हुए जहां के तहां ही खड़े रह गए !!! इस तरह वेईमान सर्दार और उनके साथियों को हम्माम वाली कोठरी में कैद कर के भैरोसिंह दूसरी राह से बाहर हुभा और कुसुमकुमारी के पास झूमता और गाता हुआ चला |--- (रागिनी विहाग) "गुरु को न मान, गुरु-बन्धु हूं तें रारठाने, निपट अमाने, मनमाने करें प्रन मैं। मानै कुल देव नाहि, मान देव सनमाने, अति भरमाने, लोक-लाज मेटि छन मैं ॥ बनत सयाने, तापै सार नाहिं जाने जाने, नार घर आने जे कुनार घ्यार भन मैं । कुपढ़, कुजात, कुल बोरन, कसाई, कूर, कायर, कलंकी, ते कपूत कलिजन मैं ॥"