पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/८५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

स्वगायकुसुम ( पच्चीसधा पञ्चीसवां परिच्छेद, A असामी गिरफ्तार हुए ! "म्बलानां कण्टकानां च, द्विविधैव प्रतिक्रिया। जपानन्मुखभङ्गो चा, दूरतो वा विसर्जनम् । (सुभाषित) FREETस परिच्छेद में हम भैरोसिंह की चालाकी का हाल खोलकर बहुत सी बातों के गुप्त भेद को बतला दिया was मबह के पांच बजे मजिष्ट साहब अपने दलबल सहित कम हारी के बाग में दाखिल हुए। उस समय कुसुम, बमन्न, भैरोसिंह आदि सब लोग बाग में मौजूद थे । मजिष्ट्र साहय के सामने भैरोसिह ने हम्माम की सरंग का दर्वाजा खोलकर उसमे बंद किये हुए लोगों को गिरफ्तार करवा दिया। बात की बात मे वे सब बदमाश उस सुरंग में से निकाले जाकर शंध लिये गए और उन सभोको वेडी-हथकड़ी डाल दी गई। फिर कसम की प्रार्थना पर कि, 'मेरा इजहार यहीं ले लिया जाय'-और बाबू कंवरसिंह के अनुरोध पर कि, 'यह लड़की इजहार के लि कचहरी तक न घसीटी जाय', न्यायवान मजिष्टर साहब ने दीं-बाग मे-बैठकर सभोंका इजहार लिया। सबसे पहिले भैरोसिंह ने इस प्रकार अपना इजहार दिया,- ____ "मेरा नाम भैरोसिह, मेरे बाप का नाम हीरासिंह, मैं जाति कात्री और रहनेवाला बक्सर का हूं। मैं मुद्दत से बीवी कसुमकुमारी की मां की तावेदारी मे रहता आता हूं और अब बीवी कुसुमकुमारी की खिदमत में हूं। उस दिन जिस दिन कि मैने बाबू बसन्त कमार को खोजने जाकर बाबा सिद्धनाथजी के पासवाली माड़ी से निकल कर करीमवखश और झगरू को भागते देखा और उस झाड़ी के अदर बाबू बसन्तकुमार को जखमी और मुर्दे की हालत में पाया था; उसका हाल मैं हार के इजलास में पहले जब कि बाबू बसन्तकुमार के आराम हान पर उनका इजहार लिया गया था अज कर चुका हु