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पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/९६

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परिच्छेद) कुसुमकुमारी। ~ ~ हमारे पाठकों को याद होगा कि परसों रात को कुसुम और बसंत को भैरोंसिह ने उस सुरग में पहुंचा और वहांका सारा भेद बतला कर उन्हें उसी रास्ते से घर रवाने किया था और फिर करीमबख्श आदि को वहां ला और फांस कर वह (भैरोसिंह) खुद भी उस दक्खिन ओर वाली सुरंग के रास्ते से गाता हुआ कुसुमकुमारी के शयन-मन्दिर में पहुंच गया था और तड़के कुसुम और बसन्त को बाग में ले आया था। कुसुम ने अपने नौकर-दाइयों को यों कहकर समझा दिया था कि,-'मैं डाकुओं के आने की खबर पाते ही चुपचाप इन (बसन्त) के साथ घर भाग गई थी, और सुबह बाग में आई थी, पर तुम लोग सब से यही कहना कि, 'कल रात को बीबी बाग मे न थी, अपने घर थी' इत्यादि। पर हमारे प्यारे पाठकों ने उस दक्खिन ओर वाली सुरंग का हाल, जो कि कुसुम के महल तक भीतर ही भीतर गई थी, नहीं जाना है, इसलिये संक्षेप हो में उसका हाल लिख कर हम इस परिच्छेद को पूरा करते हैं,- वह सुरंग भी कुछ दूरतक सीधी जाकर, फिर ज़रा ज़रा दहने- बाए घूमती हुई दूर तक चलो गई थी, और जहां पर वह ख़तम हुई थी, वही पर की दीवार ठोंकने से एक पटिया हट जाती और उसके कुछ ऊपर दोषार में बन गए हुए एक छेद में ताली डालकर कल घुमाने से एक पटिगा अलग सरक कर राह कर देती थी। उसके भीतर घुसने पर चक्करदार सीढ़ियों का सिलसिला ऊपर तक चला गया था। जहां पर जाकर ऊपर सीढ़ियां खतम हुई थी, वहीं ऊपर वालो सोढ़ी में एक पीतल का मार पच्ची किया हुआ था। उसकी आंख में ताली गड़ाकर पेठने से सामने की दीवार में की एक पटिया अलग होकर ज़मीन केअदर धंस जाती और कुसुमकुमारी के शनय. गृह में जाने के लिये एक आलमारी मे राह बनाती थी। उस राह से शयनगृह में जाने पर दूसरी ओर उस आलमारी की ज़मग्न में भी वैसा ही एकमोर बना था ! बस उसकी आख में भी वैसे ही ताली गड़ाकर उलटी कल ऐंठने से खट्ट से पटिया निकल और दीवार से लगकर बेमालुम होजाती और फिर दखनवालों का यही जान पडता कि यह मालमारी क मल वे और कुछ नहीं है