पारच्छद) कुसुमकुमारों
- अट्ठाईसनां परिच्छेद.
__भैरोसिंह की जीवनी । "दुःखाङ्गारकतीत्रः, संसारोऽयं महानसो गहनः । इह विषयामृतलालस, मानसमार्जार मा निपत" (व्यासः) ENAन को, आठ बजे के समय, जबकि कुसुम और बसन्त अपने कामों से निश्चिन्त होकर अकेले में बैठे हुए थे, भैरोसिंह बलाए गए। I उनके आने पर कुसुम ने कहा, "इस सुरंग के पोशीदा हाल के बयान करने का तुमने जो वादा किया था, उसको." भैरोसिंह ने कुसुम को रोककर कहा,---" पहिले टस हाल के कहने के, मैं आपसे इस बात की प्रतिज्ञा कराया चाहता हूंकि इस सुरग के हाल सुनने पर, कई कारणों से, जिनका हाल कि आपको सुनने पर मालूम हो ही जायगा, आप मुझपर क्रोध, अश्रद्धा, या वुरा खयाल न करें" कुसुम,-( अचरज से )"क्या इसमें ऐसी भी बात है ?" भैरोसिंह,-"हां है कुछ, तब तो प्रतिज्ञा कराने की जरूरत पड़ो!" कुसुम,-"तो तुम निश्चय जानो कि अगर तुमने मेरे बाप को भी मार डाला होगा, तब भी मैं तुम पर उतनी ही मेहरवानी रक्खंगी, जितनी कि इस वक्त रखती हूं।" भैरोसिंह,-"जी नहीं; यह सब कुछ नहीं है। पर बात यह है, कि मैं बड़ा पापी हूं, और सच तो यह है कि मैंने इस संसार में अपना जन्म व्यर्थ ही गवांया ! ” इतना कहते कहते उसने एक लंबी सांस ली और फिर यो कहना प्रारभ किया,-" मेरी उम्र इस समय लगभग सत्तर वर्ष के होगी. पर मैं मुश्किल से साठ बरस का जचता है। इसका कारण यही है कि मैं चालोस बरस स ससार क भोग विलास को छोटे