स्वर्गीयकुसुम (अट्ठाई पवा हुए हूँ और अबतक कसरत करता जाता हूं।" कुसुम,-" पेसा!" भैरोसिंह,-"जी हां,-सुनिए --मैं जाति का क्षत्री तो अवश्य हूं, पर मेरा घर-द्वार इस संसार में लिवा आपकी योदी के, और कहीं नहीं है! लोगो ने यह कह रहा है, इसीसे लोग यह जानते हैं, कि, 'मेरा घर नवयर में है.' पर नहीं, इस संसार में मेरे खड़े होने लायक जगह, सिबा आपकी इयोढ़ी के, कही भी नहीं है, और मेरे कुल-परिवार में सिवा मेरे, अब कोई भी नहीं बना है, जो मरने पर मेरे नाम पर एक चुल पानी भी देगा!" इतना कहते कहते भैरोसिंह ने एक लम्ची सांस ली और फिर यो कहना प्रारम्भ किया,-आप घबराइएगा मत, सुनिए, आप का यह मकान, आएका याग और आपके ये सारे गांव-इलाके आदि जो कुछ माल-मता है, वे सब मेरे ही है!" इतना सुनते ही कुसुम बेगरह चिबुक स्टी, बसन्तकुमार के भी अचरज का कोई ठिकाना न रहा और कुछ माज्ञा,-",! हैं! यह क्या बात है ? भैरोसिंह ने कहा,"घबराइए मत, सुनती चलिये ! माजले पचास वर्ष पहिले की बात मैं कहता हूं, उस समय मेरी उम्न लग- भग उन्नीस-बीस वर्ष के होगी! जवानी की तरंगों में मेरे सारे गंठीले अंग जोश मार रहे थे, माता-पिता मेरे स्वर्ग सिधार चुके थे, मैं अपनी सारी सम्पत्ति का पूरा मालिक हे या और मेरे सिर पर सिवा नारायणा के, और उस समय था । यह मकान, इसकी तुरंका और बाग मेरे पिता ने अपनी जवानी के समय में बड़े शो से बनवाया था और उन्होंने अपने भरने के थोड़े ही दिनों पहिले इस अजायब-घर के सारे भेद मुझे बतलाए थे। यही कारण है कि कल के पहिले इस संसार मे इस अजायब-घर का मेद ला केवल में ही था और आज आप-दीनो साहयों
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