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कोड स्वराज

उसने पहले वेस्ट (West) से, बड़ी संख्या में लॉ जर्नल डाउनलोड किए थे, लेकिन उसने उन्हें भी कभी रिलीज नहीं किया। बल्कि उसने उन आर्टिकल्स पर, एक बिग-डेटा विश्लेशण करके एक बुनयादी (seminal) पेपर संयुक्त रूप से लिखा था जिसमें यह दिखाया कि कैसे लॉ के प्रोफेसर लोगों को, आमतौर पर कॉरपोरेट हितों के अनुकूल, उनके मुद्दों पर लिखने के लिये अनुदान मिलता है जैसे कि प्रदूषण के चलते उत्पन्न वैधानिक देयधन (लायेबिलिटी), और बाद में यही आर्टिकल्स कोर्ट के मामलों में, उनकी तरफ से उपयोग किए गए।

आरोन ने, हमारे प्रिय मित्र क्ले जॉनसन से कहा कि वह पर्यावरण परिवर्तन के अनुसंधान में, भ्रष्टाचार के सबूत ढूढ़ने के लिए वह जे.एस.टी.ओ.आर के आर्टिकल्स का विश्लेषण कर रहा था। आरोने की गिरफ्तारी के बाद, जहां तक क्ले को याद है, उसका वक्तव्य इस प्रकार का था, “इसमें कोई संदेह नहीं है कि डेटा फ्री होना चाहिए, लेकिन मैं सिर्फ पर्यावरण परिवर्तन आर्टिकल्स को लिखने के लिये, दिये गये अनुदानों का विश्लेषण करना चाहता था।” ऐसा आरोन ही कह सकता है।

आरोन की गिरफ्तारी और मेरे द्वारा किये जा रहे टेक्निकल स्टेंडर्ड के मामलों के गहन अध्ययन के चलते मैं कई रात ठीक से सोया नहीं और मैंने अनगिनत रातें अध्ययन करने में बिताये। जब जनवरी, 2013 में आरोन ने आत्महत्या कर ली तो इंटरनेट पर कार्यरत सभी लोगों ने शोक मनाये, खासतौर पर उनलोगों ने जिन्हें उसके साथ काम करने को अवसर और गौरव प्राप्त हुआ था। मुझे उसके जाने का आज भी बहुत दुख है।

हिंद स्वराज

वर्ष 1909 में महात्मा गांधी ने “हिंद स्वराज” की रचना की। वह लंदन से वापस जहाज से लौट रहे थे और दक्षिण अफ्रीका में ज्यादा गंभीरता से मुद्दों को उठाने वाले थे। उनका सत्याग्रह अभियान सफल रहा था, लेकिन यह सफलता अत्यंत कष्ट सहकर, और बलिदान देकर प्राप्त हुई थी। मुझे लगता है कि गांधी जी अपने मस्तिष्क में उन बातों पर स्पष्टता लाना चाहते थे जिनपर उन्हें विश्वास था। गांधी जी, एस.एस किल्दोनन कैसल नामक जहाज पर, नौ दिनों तक जमकर लिखते रहे। जब उनके दाएं हाथ में दर्द होने लगता तो वे बाएं हाथ से लिखने लगते। जब उन्होंने इस पुस्तक का प्रकाशन किया था, तो उन्होंने उसके ऊपर बड़े अक्षरों में लिखा था “कोई अधिकार आरक्षित नहीं (No Rights Reserved).”

यह पुस्तक सबसे हटकर थी लेकिन लाजवाब थी। गांधी जी के पास ढेरों विचार थे जिनमें से कुछ उनके मित्रों को तर्कसंगत लगते थे और कुछ नहीं। नेहरू और टैगोर इस पुस्तक को पसंद नहीं करते थे। इस पुस्तक में कुछ ऐसे विचार हैं जो आज मुझे मूर्खतापूर्ण लगते हैं जैसे “अस्पताल पापों का प्रसार करने वाले संस्थान हैं (hospitals are institutions for propagating sins)।” परंतु इन कड़े वाक्यों के बाद भी कोई भी व्यक्ति यह तो स्वीकारता है कि बापू के विचारों में दम था। भले ही आप पुस्तक में प्रत्येक शब्द का समर्थन न भी करते हो लेकिन उसमें, गांधी के विचार से, भारत में और भारतीयों द्वारा झेली जाने वाली समस्याओं का संपूर्ण विवरण था और उसके निवारण के दमदार सिद्धांत भी दिये गये थे।

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