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कोड स्वराज पर नोट

मैंने इस पर सलाह लेने के लिए कई लोगों को नोट भेजा कि वे इसके बारे में क्या सोचते हैं। वे मेरी इस बात से सहमत थे कि डेटाबेस को गुप्त रखने से बुरे पटेंट को रोका नहीं जा सकता है। मैं इस निष्कर्ष पर आ चुका हूँ कि इस सूचना को गुप्त रखना, महत्वपूर्ण सार्वजनिक सूचना की प्रगति और विस्तार को बाधित करता है। मुझे इस बात का ध्यान है। कि मैंने डेटाबेस को नहीं देखा है, और संस्कृत के विशेषज्ञों ने सावधान किया है कि किसी भी फारमुलेशन्स को बिना उसके अंतर्निहित लेखों/सद्धांतों को समझे, डेटाबेस में डालना उसे कचरा का ढेर बना देना होगा जिससे सिर्फ कचरा ही निकलेगा।

पर यह बहुत ही उच्च गुणवत्ता वाला डेटाबेस है। मेरा मानना है कि विस्तृत रूप से इसकी उपलब्धता, उपयोगी ज्ञान के प्रचार में सहयोग कर सकती है। यदि यह जानकारी बुरे पेटेंट को रोकने में उपयोगी है तो इस जानकारी को पेटेंट-बस्टरों के व्यापक समूह को उपलब्ध कराना लाभदायक हो सकता है। यदि डेटा उच्च गुणवत्ता का नहीं है तो संस्कृत विशेषज्ञ इस पर टिप्पणी लगाने का काम कर सकते हैं और इसे ज्यादा उपयोगी बना सकते हैं। यह आयुर्वेदिक और यूनानी विज्ञान की प्रगति में भी काफी उपयोगी हो सकती है।

केवल परीक्षकों तक डेटाबेस सीमित करने से बेहतर यह हो सकता है कि यह वंदना शिवा जैसे पेटेंट बस्टरों को इस डेटाबेस को उपयोग करने के लिए प्रेरित किया जाए। मेरी सहकर्मी बेथ नॉवेक, व्हाइट हाउस में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के ओपन गर्वमेंट इनिशिएटिव की अध्यक्ष थी (वे सैम पिट्रोडा की भी दोस्त हैं)। वो “पीयर टू पेटेंट (Peer To Patent)” नामक तंत्र की प्रवर्तक थी, जिसमें पेटेंट परीक्षक पूर्वगामी कला के उदाहरणों का पता लगाने के लिए नेट पर अन्य लोगों के साथ काम क । सिर्फ कुछ पेटेंट परीक्षकों के लिए डेटाबेस उपलब्ध कराने के बजाय, पेयर टू पेटेंट बेहतर परिणाम पाने के लिए लोगों के ज्ञान का लाभ उठाता है।

मैं इस बारे में सुनिश्चित नहीं हैं कि इसका उत्तर क्या है लेकिन मेरा यह झकाव है कि सरकार के ट्रेडिशनल नॉलेज डिजिटल लाइब्रेरी के डेटाबेस को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराना चाहिए। इसमें सार्वजनिक क्षेत्र का ज्ञान शामिल है, इसे सरकार द्वारा इकट्ठा किया गया था और इसे उपलब्ध करना परंपरागत ज्ञान के लिए अच्छा होगा।

सरकारी उद्यम के रूप में, ऐसा लगता है कि कॉपीराइट अधिनियम, सूचना का अधिकार अधिनियम, और संविधान सभी की प्रवृति मुक्त प्रकाशन की ओर है। मैं गलत भी हो सकता हैं, लेकिन मुझे उम्मीद है कि वर्ष 2018 में इस पर चर्चा होगी। इसके परिणामस्वरूप हो। संकता है कि सरकार को एक औपचारिक याचिका दायर करूं कि वे अपने डेटा को सार्वजनिक करें, केवल पोर्टल के लिए नहीं बल्कि उसे भारी मात्रा में डाउनलोड करने के लिये और फिर उसको अपने तरीके से प्रयोग करने के लिए।

वैज्ञानिक ज्ञान और दिल्ली विश्वविद्यालय की फोटोकॉपी की दुकान

नौंवा क्षेत्र है वैज्ञानिक ज्ञान का। मेरा तात्पर्य शोध पत्रिकाओं में छपे आधुनिक विद्वानों के प्रकाशन से है। वर्ष 2017 में मेरा अधिकांश प्रयास वैज्ञानिक ज्ञान तक पहुंचने की बाधाओं से निपटने में लगा था। विशेष रूप से अमेरिकी कर्मचारियों और अधिकारियों द्वारा उनके

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