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कोविद-कीर्तन


समय मिल गया। उन्होंने कभी इस बात की लज्जाजनक शिकायत नही की कि मुझे अपनी माँ की बोली बोलना या लिखना नहीं आता। उनका नाम है---ज़काउल्लाह। उनका शरीरपात हुए अभी थोड़ा ही समय हुआ।

मौलवी ज़काउल्लाह की जन्मभूमि देहली है। वही के कालेज से उन्होंने शिक्षा पाई थी। शिक्षाप्राप्ति के बाद आप उसी कालेज में गणित के अध्यापक हो गये। वहाँ से आपकी बदली आगरा-कालेज को हुई। वहाँ आप अरबी-फारसी पढ़ाते रहे। सात वर्षों तक यह काम आपने किया। तदनन्तर आप स्कूलों के डिपुटी इन्सपेक्टर हुए। इस ओहदे पर आप ग्यारह वर्षों तक रहे। १८६९ मे आप देहली के नार्मल स्कूल के हेडमास्टर हुए। तीन वर्ष बाद आपको इलाहाबाद के म्यूर-कालेज मे जगह मिली। वहाँ आप पन्द्रह वर्षों तक अरबी और फ़ारसी पढ़ाते रहे। इसके बाद आपने पेन्शन ले ली। उसका उपभोग आपने कोई चौबीस वर्षों तक किया।

जकाउल्लाह साहब ने उर्दू के साहित्य को अपनी बनाई हुई सैकड़ों किताबों से भर दिया। बहुत थोड़ी उम्र ही से आपको लिखने का शौक हुआ था। आपने सरकारी काम करके अवशिष्ट अवकाश को कभी व्यर्थ नहीं जाने दिया। पेन्शन लेने के बाद तो आप इस तरह साहित्य के काम मे जुट गये कि कितने ही बड़े-बड़े और अनमोल ग्रन्थ आपने लिख डाले। इतिहास और गणित से आपको बड़ा प्रेम था।