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विष्णु शास्त्री चिपलूनकर


private, have a commixture, must of necessity contain a more true native and lively representation---Advancement of learning

जो मनुष्य स्वतन्त्रताप्रिय है; जिसमे अपने देशवासियों के कल्याण की इच्छा सर्वदा जागृत है; जो अपनी मातृ-भाषा से निःसीम प्रेम रखता है वह धन्य है। वह अवश्य सब का प्रेम-भाजन होता है; उसे सब लोग अवश्य आदर की दृष्टि से देखते हैं, उसकी विमल कीर्ति का अवश्य प्रसार होता है और उससे जनसमूह को लाभ भी अवश्य ही पहुँचता है। स्वतन्त्रता, मातृ-भाषा का प्रेम और लोकोपकार, इन तीनो मे से एक भी गुण जिस पुरुष मे वास करता हो, वह भी सर्वसाधारण के आदर का पात्र होता है। फिर, जिसमे ये तीनो ही गुण पूर्णरूप से विद्यमान हों, उसके जन्म से उसके देशवासी अपने देश को धन्य और अपने को कृतार्थ मानें तो क्या आश्चर्य! विष्णु शास्त्री चिपलूनकर, जिनका संक्षिप्त जीवन-वृत्तान्त नीचे लिखा जाता है, ऐसे ही थे। उनमे ये तीनो गुण एक ही साथ जागरूक थे।

दक्षिण मे रत्नागिरी ज़िले के अन्तर्गत चिपलून नामक एक क़सबा है। विष्णु शास्त्री के पूर्वज पहले वही के निवासी थे। इसी लिए उनका उपनाम चिपलूनकर पड़ गया। वे दाक्षिणात्य कोकणस्थ ब्राह्मण थे। पूना के पेशवाओं के द्वारा विद्वानों का जब विशेष आदर होने लगा तब उनके पूर्वज चिप-