पृष्ठ:कोविद-कीर्तन.djvu/४४

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३---महामहोपाध्याय पण्डित आदित्यराम भट्टाचार्य, एम० ए०

इस प्रान्त के पढ़े-लिखे लोगों में से ऐसा शायद ही कोई होगा जो पण्डित आदित्यरामजी के नाम से परिचित न हो। जिसने किसी स्कूल या कालेज में प्रवेश किया है और पण्डितजी के ऋजुव्याकरण को हाथ में लेकर "भवति, भवतः, भवन्ति" सीखा है, उसकी तो कुछ बात ही नहीं, वह तो उनका विद्यार्थी ही है। वह न जानेगा तो जानेगा कौन?

पण्डितजी के पूर्वज बङ्गाल मे रहते थे। आप पाश्चात्य वैदिक श्रेणी के ब्राह्मण हैं। अर्थात् आदिसूर के समय मे आपके पूर्वज इसी तरफ़ से वहाँ गये थे। पण्डितजी का वेदयजु, शाखा कण्व और गोत्र घृतकौशिक है। आपके मातामह के पूर्वजों में काशीराम वाचस्पति नाम के एक विख्यात पण्डित हो गये हैं। स्मृतिशास्त्र के प्राचार्य रघुनन्दन के तिथितत्त्व नामक ग्रन्थ की उन्होंने एक बहुत अच्छी टीका लिखी है। काशीराम के पौत्र राजीवलोचन न्यायभूषण बनारस मे आकर रहने लगे। वहाँ वे गवर्नमेंट-संस्कृत-कालेज मे वेदान्त के अध्यापक नियत हुए। यह घटना १८२८ ईसवी की है। वहाँ से वे प्रयाग चले आये। प्रयाग में उनको