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पण्डित आदित्यराम भट्टाचार्य, एम० ए०

म्योर-कालेज और "फ़ैकल्टी आफ़ आर्टस्" के लिए पण्डित आदित्यरामजी ने जो कुछ किया है उसकी प्रशंसा शिक्षा विभाग के डाइरेक्टर और कालेज के प्रधानाध्यापक ने खूब की है। आप "सिडिकेट' के मेम्बर हैं। इलाहाबाद के विश्वविद्यालय की सभाओं मे आपने कभी किसी को प्रसन्न करने अथवा किसी व्यक्ति विशेष को लाभ पहुंचाने के इरादे से कोई काम नहीं किया। जो कुछ आपको उचित और न्याय्य समझ पड़ा वही आपने स्पष्टतया कहा भी है और उसी के अनुसार, समय पर, आपने काम भी किया है। यूनीवरसिटी-कमिशन को आपने अपनी जो राय लिखकर दी थी वह पढ़ने लायक़ है। उसमे आपने इस बात की साफ़-साफ़ सिफ़ारिश की है कि विश्वविद्यालय की सभाओं में शरीक होनेवालों को इस बात की स्वतन्त्रता दी जानी चाहिए कि निर्भय होकर वे अपने सच्चे आन्तरिक विचारों को व्यक्त कर सकें। इस लेख मे पण्डितजी ने संस्कृत-प्रचार के विषय मे बहुत कुछ कहा है।

पण्डितजी की विद्वत्ता से प्रसन्न होकर गवर्नमेट ने, १८९७ मे, आपको महामहोपाध्याय की पदवी देकर अपनी गुणग्राहकता का परिचय दिया। आपके नाम के साथ इस पदवी का मणि-काञ्चन का जैसा योग हो गया।

३० वर्ष नौकरी करके जब आप म्योर-कालेज से अलग होने लगे तब कालेज मे एक सभा हुई। डाक्टर थीबो ने अपनी वक्तृता मे भट्टाचार्य महाशय के कामों की खूब प्रशंसा