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कोविन्द-कीर्तन

३----आपकी पुस्तक उपयोगी और मनोहर है---आपका लेख अत्युत्तम है। काशी संस्कृत का घर है परन्तु आपकी सी भाषा लिखनेवाले यहाँ क्कचित् निकलेंगे---पुस्तक छपनी चाहिये जिसमे लोगों का उपकार हो । व्यय का विचार कर लीजिये।

आपका शुभचिन्तक

श्रीमथुराप्रसाद मिश्र

Mathura Prasad Misra.

जान पड़ता है पण्डितजी को अपना नाम अँगरेज़ी में लिखने का बड़ा शौक था। क्योंकि इस पोस्टकार्ड के नीचे हिन्दी में अपना नाम एक बार लिखकर दुबारा उसे आपने अँगरेज़ी से भी लिख दिया है। आप अनावश्यक "यावनी" शब्दों के पक्षपाती न थे। पर इस पोस्टकार्ड के ऊपर हमारा पता लिखते समय गॉव दौलतपुर न लिखकर, जल्दी में आप "मौज़ा दौलतपुर" लिख गये हैं!

पण्डितजी को हमने बहुत सी चिट्ठियाँ लिखी होंगी। उनमे से कोई-कोई बहुत बड़ी और महत्त्व की थीं। परन्तु हमको उत्तर सदैव आपने पोस्टकार्ड ही पर दिया। आप कार्ड मे भी पाराग्राफ़ अलग-अलग लिखते थे और सबके पहले नम्बर देते थे। नीचे आप अपना नाम हिन्दी मे "श्रीमथुरा-प्रसाद मिश्र लिखकर अँगरेज़ी में "M P. M" या Mathura Prasad Misra लिख दिया करते थे। एक बार हमने धृष्टता से इस अनावश्यक M. P. M. के लिखे जाने का कारण पूछा।