पृष्ठ:क्वासि.pdf/११९

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कालि ता गुरा स्मयमान" बिना, लगन सिन्न खिन्न स्मरण, पिता मजा गुग से हग स 17 बद्ध, कात, यह मा मन आज श्रात। ता अलखित राज भ77, परम नागम सिंह द्वार, जिसमे दिन काल रूफ दो कपाट सुनि सार, इनको तुम किये बैठे हो, निशिकार, खोलो निज साध समुद, हुमा अमित युग युगात, प्रिय, मम मन आज बात। ५ जब ३ प्रिय, तुमको पाने की उमडी हिग बीच लहर, कहाँ कहाँ हूँ फिरा, बीत गए अयुत दखा तभी गिले सात दिवसात अरर देर हुई निष्फत मम, रुण्ठ हुआ मन, क्ता व प्रिय, मग मा आज श्रात। ६ मगलमय, खोलो तो निज मदिर के कपाट, द्वार देहली पर है ना मम चिनित सत्तार, उभरा है उस पर मम जीवन इतिहास ठाट,- वह पुराण, जिससे है शकित मम भात प्रात प्रिय, मम मन भाज श्रात । १ सरिमत, सुसकान से खिला हुस। २ किनारे-दिक्काला अरर = दिक् और काल रूपी दी किंवाई। चोरानवे