पृष्ठ:क्वासि.pdf/१२०

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कासि सोला निज उद्ध द्वार, आओ, मुसकाते से, नयनों में सिहर उठा मधु रस बरसाते ले, मम अवरों गुन गुन गुन गाते से, हो जाऊँ मे अन त, जो हूँ गुण पद्ध, सात, प्रिय, मम मन आज श्रात । यह शाश्वत टोह भार, यह सतत लगन लिये,- खोज तुमको मे उमङ्ग मगन लिये, गहन बने बैठे हा, सजन, हिये, आजाओ सम्मुस अब, हो आकुल प्रारा शा त, प्रिय, मम मन आज भात । अस तोप जिता जत, उपास दिना ३० जनवरी १९८३ } बिचानवे