पृष्ठ:क्वासि.pdf/१२२

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छासि ३ जन आप देह घर सपन मम मनसि जान ता, वह निशि क्या न बने मरी सोभाग्य रात ? तव पद रति मपित मम अङ्गीत शिपिल गात, निशि का तम तोम हुआ मम नर जीवन प्रभात । प्रिय, त्वममय मेरा मा, यम्मय गम पिंजित प्राण, श्रो, मेरे भासमान । एक निमिप सम्पुट में भरकर श्रान त्य प्रहर, नयनों से कौतुक कर, मुसकार तुम, प्रियवर । रामय यह काल खण्डा, जिसको चल क्षण कहकर, हँसते हे जग जन गण, नहीं हुका अजर, अमर । खून दिया तुमने इस क्षर को अमरत्व दान, नैशयाम करम मान । पू श्रवणां म, नयनों में, प्राण राजन म, गन में,-- अकित है अमर छाप रोम रोम, कण कण म, गूजा अनहद निनाद तव ककरण झन झन में, व्योम गान नान उठो, मेरे प्रिय, तव सन म, आए दिक् काल तुम्हें व दन करने, सुजान, ओ मेरे रुचिर प्राण 1 श्री गणश कुटोर कानपुर दिनाङ्क ३०४२ सतान