पृष्ठ:क्वासि.pdf/१२६

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धासि ग्राण पक्षी ने गगन ललक कोतूहल बिखेरा। उड चता इस साध्य नभ में, मन विहग तज निज बसेरा । ३ स्मनित उड्डीयन ध्वनित गति- जनित अनहद नाद से यह- दिगदिग ताकाश रहा है ऊर्च गति ने ध्यान मग्ना गीत यति को प्रान घेरा। उड चला इस साध्य नभम मा विहग तज निज बसेरा । बक्षस्थल, एक सौ एक