पृष्ठ:क्वासि.pdf/१३३

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पुलकित मम रोम-रोम पुलकित मम रोम रोम, मधुर पणनमय मम तन, कम्पिन्न भम तार तार गुज रहे हैं क्षण क्षण । १ मन साम्बर में उमडी स्वनिता गान गगन गग, है उच्छल स्वर तरंग, सिरित है बांग छाग, भम सेद्रियता अनग, उ मन मग हिय उमंग, सजा चरण अरुण रंग रजित जीवन शॉगा, पुलकित मम रोम रोम, मधुर वाणनमय मग तन ! २ मम पाकुल नयनों की तुम चिर झोंकी, प्रियतम, तुम मम मनुहारों की हो छलि बॉकी, प्रियतम, तुम हो मजुल प्रतिमा, कवि उपमा की, प्रियतम, तब तिकिणि अनुगामी हैं मेरे गायरान! पुलकित मम रोम रोम, मधुर कणनमय मम ता! ३ मृदुल ज्योति किरण सहश, भेद स्वप्न अ धकार,-- भले पधारे हंसते, ओ मम जीवनाधार, एक सोपाठ