पृष्ठ:क्वासि.pdf/१३६

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छासि यो ही कमी हुए हे कुछ कुछ रसमय कुछ पाहन अरसीले, बन नन कर मिट गए अनेकों मेरे मधुमय स्वप्न रंगीले । ४ मैंने का सजीनता की जग के कठिन शैल पाहन में ' में कर पाया प्राण स्फुरण का अपने अभि य जन वाहन' में। मुझे कब मिले सु दर मुक्ता भावार्णव अवगाहन में यदा कदा है मिले मुझे तो तुम जसे कुछ अतिथिलनीले । यों ही बन बन कर निगडे हे मेरे मधुमय स्त्र न रॅगीले । गणेश बुटीर, कानपुर दिशा३ मई १६४८ } 9 एक सौ ग्यारह