पृष्ठ:क्वासि.pdf/१४२

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बासि खगी रिह बन पाया वया उसका स्या यो अकुलाया सा बोल उठा यह राग ? काल उर? धूप छाँह, सुरा दुख, मान द निरा7 द, प्राण ! जीवन के सङ्ग लगे। उत्तरे हैं सद। गा 1, शु य नीड लख राग को यर्थ लगी निज उडा, रागी निम श्रण मिस यह रहा रकमय रवर रेंग! इसीलिये अकुलाकर बोल उठा यह ग राग । ५ धुंधला सा, सीता सा अम्बार यह कॉप रहा, अपने सारुण उर से अगती को टाप रहा, किसी गहनता को, ससि, मम लघु गामाप रहा, कितो गहरे हो तुम, गोलो, हे शाण समग ? आकर यो रोक लिया तुगो मम ॥ गग' ६ हलका होने को है क्या शा टोह पार ? जीवन में आए हो बाकर मा पूर्ण 'यार ? देखी, मम जयनों में है कितना व्यथा कार ! युक्त करोगे क्या तम गेरा यह भाष विलग ? ध्वनि नदित दय, प्राणा, गा गम मा | काश्मीर विनाति कुटीर, मनसूरी। दिमा १ १ श्रौल १९४६ } 0947 मो TIETT