पृष्ठ:क्वासि.pdf/३३

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प्रिय, जीवन-नद अपार प्रिय, जीवन नद अपार, निशद पाट, तीन धार, गहर भेवर, दूर पार,--- निय, जीवन-नद छापार । इस तट पर ना जाने कब से रम रहे प्राण, ना जाने कितने युग बीत चुके शूय माT, पर, अव की उस तट से आई है घेणु तान, खींच रही प्राणों को बरबस ही बार चार ? प्रिय, जीवन-नद नपार। २ किस विधि नद करू तरित ? पहुँचू उस पार, सजन ? कचा घट, जल-सकट, लहर, मॅवर, तीन “यजन, भय है, गल जायेगा यह मम तरणोपकरण, दुस्तर सी लगती है जीवन की तीन धार, प्रिंय, जीवन गद अपार । ३ यदि वाहित करना था जीवन नद वेग युक्त,- तो यह रज माजन भी कर देते अग्नि भुक्त,