पृष्ठ:क्वासि.pdf/४३

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मेरे मधुमय रवग्न रँगीले बन कर मिट गए अनेकों मेर गधुमय स्वप्न रंगोले, भर भरकर फिर फिर सूरो हे मेरे लोचन गीरो गोले, १ मेरा पया कोशल ? क्या मेरी नचल तूली १ या मेरे रंग ? क्या मेरी कल्पना हसिनी ? मेरी या रस रास रति उगग मे कब का रेंग रूप चितेरा ? मे कब पिचर सका राग कुल सँग ? मग स्वाना के चित्र स्वय ही वो, स्मय ही मिटे हठीने , भर गरकर फिर फिर सूरी है ये मेरे रग पात्रा रेंगाले । २ मेरे साप्न निलीन हुए है, किंतु, शेष है परछाई सी, मिटने को ता मिदे, कि तु वे झाड गा है इक झाई सी, उस झिल मिल सी स्मृति रेखा से हैं ये श्रारा अकुलाई सी, उसी रेस से अन उठते है फिर फिर बाल चि चमकीले, चन बनकर मिद गए तो मेर सपने गीले गीले । ३ कलाकार का कामे, प्रियतम, कल मेरी तूलिका चलाई ? मेने कब यनत कला । मदिर में वत्तिका जलाई ? यो ही कमी हॉप उट्टी है गेरी अंगुली और सला, सोलह