पृष्ठ:क्वासि.pdf/४४

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कासि ही कभी हुए है कुछ कुछ रसमय कुछ पाहन अरसीले, बन बनार मिट गर भनेको मेरे मधुमय स्वप्न रंगीले । मैने कब सजीवता की जगक कठिन शेल पाहन में ? मैं कर पाया प्राण स्फुरण कर अपने अभि यञ्जन वाहन' में ? मुझे कर मिले सु दर मुक्ता भानाव के प्रागाहन में ? यदा कदा है मिले मुझे तो तुम जसे कुछ अतिथि लजीले । यो ही बन बनकर निगडे है मेरे मधुमय स्मग्न रॅगीले । श्री गणेश कुटीर, कानपुर, दिनाई ३ मई, १९४८ शब्द सत्रह