पृष्ठ:क्वासि.pdf/५९

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छालि 9 दोगे क्या अ यो को मरे 7 स्नेह कुसुम मत लिडको लगए, सजन, है मेरे गात जले। दिन पर दिन बीत चले। चुम्पन की उग्ण श्वास स्मृति ही अन रही शेष, अधर मिलन कम्पन क्षण बन आए समरस लश, आकुल शालिङ्गन का मद बालस है अशेष, चिर सञ्चित भार पुज हा से गल गल निकले, दिन पर दिन बीत चले। ५ स्मरणो से कब तक, प्रिय, रीता हिय फुसलाज ? कल्पना हिडोले पर कब तक मन दुलराऊँ? 'कब तक स्मृति के बल पर अपने को हुलसाऊँ ? कर तक पहy प्रिय, तब कल्पित भुज माल गरले ? दिन पर दिन बीत चले। ६ नयनों के, अधरों के, चुम्बन की चाह लिये,- हिय में इक दाह लिये, सस्मृति में प्राह लिये,- हग जल के लघु करा में सागर की चाह लिये,- चलता ही जाऊँगा मे मग से बिना टले, इतने दिन बीत चले। चाहे बीते दिन दिन, चाहे हो युग युगात, पर, मम साधना का न फिर भी होगा दिनात, बत्तीस