पृष्ठ:क्वासि.pdf/८२

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कासि कट जाने दो जीरन यों ही, भूतो व क्षण रग रगोते । यदि होता है तो होने दो जोवन का सम्पूर्ण निभाजन, अब कर तक खोजोमो साजन' एक तार, इक स्वर, इकतनी, एक गाद, इरु राग, एक रस,-- इसी तरह अब तक का जीवन तुमने बिता दिया हे बरबस, कि तु हुआ स्वर मा सदा ही, ताने दिथे जगत ने हॅस हस, अब मत सर साधो, वैरागी, अर तुम करो मान छाराधन, अरकर तक खोजोगे साजन ? श्री गणेश कुटीर दिनाङ्क १३ जनवरी १९४२ } छापन