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पृष्ठ:खग्रास.djvu/१०३

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खग्रास

"परन्तु आकाश से भूगर्भ स्थित खनिजो का पता कैसे लग सकता है?"

"द्वितीय विश्वयुद्ध मे शत्रुओ की पनडुब्बियो का पता लगाने के लिए कुछ यन्त्र बनाए गए थे। अब इनसे तेल के क्षेत्रो और कच्चे लोहे के साधनो का पता लगाया जा रहा है। एक यन्त्र हमारे पास 'सिटीलेशन काउन्टर' है जिसका काम आकाश से पृथ्वी के रेडियो सक्रिय खनिज साधनो का पता लगाना है। एक यन्त्र दो विद्युत् चुम्बकीय क्षेत्रो का प्रसारण करता है जो धातुओ के भण्डार तक पहुँच जाते है। फिर वहाँ से धातुओ के विद्यमान होने के संकेत विमान तक आ पहुचते है। इस प्रकार पता लग सकता है कि अमुक स्थान पर खनिज है।"

"ध्रुव प्रदेशो मे भी खनिजो की सम्भावना है।"

"इस सम्बन्ध मे हम पिछड़ गए है। दूसरे देशो ने ध्रुव प्रदेश और अतलातिक तट के कुछ सीमान्त प्रदेशो से तॉबा, जस्ता, सीसा का भण्डार प्राप्त किया है। उत्तरी ओटेरियो प्रदेश में हुरो झील के उत्तर मे युरेनियम का अटूट भण्डार है। हाल ही मे अमेरिका की एक फर्म ने स्वीडन से दक्षिण पश्चिमी अमेरिका तक ३४ देशो में नई खानो का पता विमानो ही से लगाया है। और अब तो पृथ्वी पर अपने कार्यालय मे बैठे बैठे ही आकाशीय प्रयोगशाला से पृथ्वी के खनिज भण्डारो की सूचना मिल सकती है।"

"क्या एक ही यन्त्र से यह सब सम्भव है?"

"नही। इस काम के लिए हमारे पास तीन यन्त्र है। एक 'सिटलेशन काउन्टर' जो पृथ्वी मे छिपे रेडियो सक्रिय तत्वो का पता लगाता है। दूसरा है 'मैगनेटो मीटर' जो पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र मे हो रहे परिवर्तनो को ग्रहण करता है। तथा अधिक चुम्बकीय घनत्व के स्थलो की ओर सकेत करके यह यन्त्र लोहा, टिटेनियम, निकिल तथा अन्य चुम्बकीय धातुओ का पता लगाता है। जब यह कम चुम्बकीय घनत्व की ओर सकेत करता है, तब उस क्षेत्र में