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पुथल भरे इतिहास मे यह घटना एक नए युग का प्रारम्भ थी। इस रहस्यमयी शक्ति को प्राप्त करके जीवन स्तर ऊँचा उठाया जा सकता था और मनुष्य की भौतिक इच्छाप्रो की कल्पनातीत पूर्ति की जा सकती थी। अमेरिका ने इसमे पहल की थी। १ अक्टूबर १९५७ के दिन ६२ सदस्य राष्ट्रो ने वियना मे अन्तर्राष्ट्रीय अणुशक्ति ऐजेन्सी की स्थापना की। और इसके एक सप्ताह बाद न्यूयार्क मे आणविक उद्योग सम्बन्धी मेले का आयोजन किया जिसमे १३० से अधिक निर्माताओ तथा सरकारी सस्थानो द्वारा अणशक्ति के कल्याणकारी उपयोगो का प्रदर्शन किया।

इस समय भी अमेरिका के पास अन्य देशो की तुलना मे प्राकृतिक ईंधनो का प्रचुर भण्डार मौजूद था, और वह तत्काल ही अणु-ईधन का इतना मुहताज न था। परन्तु वह भी अपने कोयले और तेल की प्रचुर वर्तमान खपत को सदैव इसी रूप मे चालू नही रख सकता था। अब उसे आशा हो रही थी कि १९८० तक उसके दो तिहाई कारखाने अणु-बिजली से चालू हो सकेगे। इसके अतिरिक्त आणविक भट्टियो मे उत्पन्न होने वाले मनुष्यकृत रेडियो-सक्रिय तत्त्व तथा रेडियो-आइसोटोपो से यह सम्भावना की जा रही थी कि इनसे उद्योग, कृषि, जीव-विज्ञान तथा चिकित्सा के क्षेत्र मे अमित लाभ होगे। अमरीका ने पेन्सिलवेनिया मे एक बडा आणुविक विजली घर स्थापित कर लिया था जिसमे साठ से अस्सी हजार किलोवाट तक बिजली उत्पन्न होती थी जो ७५ हजार घरो की आवश्यकता की पूर्ति के लिये काफी थी। अब वे और भी बिजली घरो की स्थापना कर रहे थे। ब्रिटेन मे ईधन का अकाल समुपस्थित हो गया था। पश्चिम एशिया के तेल उत्पादक क्षेत्रो से उसका प्रभुत्व हट रहा था-इस कारण ब्रिटेन बडी तेजी से इधर अग्रसर हो रहा है। उसने सन ५६ मे ही काल्डर हौल मे संसार का सबसे पहला प्राणुविक बिजली घर स्थापित कर लिया था, जहाँ ५०-६० लाख किलोमीटर बिजली उत्पन्न हो रही थी। इसके परिणाम स्वरूप ब्रिटेन की अब लगभग २ करोड टन कोयले की बचत हो रही थी।

ब्रिटेन के अतिरिक्त ६ योरोपीय राष्ट्रो-फ्रान्स, जर्मनी, इटली,