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बेल्जियम, लक्समवर्ग और हालेण्ड मे भी बडे-बडे कदम उठाए जा रहे थे। वहाँ डेढ करोड किलोवाट बिजली के उत्पन्न करने की क्षमता रखने वाले आणविक बिजलीघर बनाए जा रहे थे। एशिया के कुछ देश भी इसी प्रकार का आयोजन कर रहे थे।

रेडियो सक्रिय आइसोटोप—रेडियो सक्रिय आइसोटोपो का प्रयोग भी काफी प्रगति पा रहा था। कुछ चिकित्सक १० लाख रोगियो के रोगो का निदान और उपचार रेडियो-आइसोटोपो से कर रहे थे। ऋषक पौधो तथा खेती के रोगो और कीटाणुओ का खात्मा करने के लिए विकिरण का प्रयोग कर रहे थे। केवल अमेरिकी उद्योग को ही रेडियो-आइसोटोपो के प्रयोग से प्रतिवर्ष ४० करोड डालर की बचत हो रही थी। वह निकट भविष्य में ५ अरब डालर की बचत की आशा कर रहा था।

रोगों के विरुद्ध अभियान—लुइस पेस्टर ने सूक्ष्मवीक्ष्ण यन्त्र की सहायता से आयु के पूर्वार्द्ध मे होने वाले अधिकाश सक्रामक रोगो तथा महामारियो की रोक-थाम करने और उन पर नियन्त्रण करने के उपाय ही नही मालूम किये वरन-शल्य चिकित्सा मे भी महान् सफलता प्राप्त की थी। अब आणूनिक विकिरण एक नए तथा अधिक शक्तिशाली सूक्ष्म वीक्ष्ण यन्त्र के रूप में काम कर रहा था। इसकी सहायता से हम शरीर के भीतर की प्रक्रियाएँ देख सकते थे। शरीर मे अन्वेषी रेडियो-आइसोटोपो को प्रविष्ट कर के उनकी सहायता से प्रक्रियाओ का ज्ञान प्राप्त कर सकते थे। इस आणविक सूक्ष्म वीक्ष्ण यन्त्र के द्वारा ही मनुष्य आज पहिली बार जीवित हृदय के काम को अपनी आँखों से प्रत्यक्ष देख रहा था।

राकेट और उपग्रह—११ सितम्बर १९५६ को स्पेन के वारसीलोना नगर मे भू भौतिक वर्ष की एक विशेष समिति की बैठक हुई थी जिसमे ५० देशो के १०० विशेषज्ञो ने भाग लिया था। इस बैठक मे अमरीका ब्रिटेन रूस, जापान, फ्रान्स, आस्ट्रेलिया और कनाडा ने अपने-अपने कार्यक्रम रखे थे। उस समय अमेरिकन प्रतिनिधि थे कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के डा॰ जोजेफ कामलिन। उन्होने कहा था कि व्योम मे उपग्रह छोडना मनुष्य द्वारा उठाया