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खग्रास

उन्हें इसलिए सुसज्जित किया जाना चाहिए ताकि युद्ध छिड़ने पर वे इन आयुधो से सुसज्जित शत्रु राष्ट्रो का मुकाबला कर सके।" नून स्पष्ट ही सोवियत रूस की ओर संकेत कर रहे थे। रूस के अतिरिक्त भारत ही उनका शत्रु राष्ट्र है जिसके पास ऐसे अस्त्र है ही नहीं।

पिछली बार भी जब इस सन्धि संगठन के देशो की बैठक हुई थी तब भी पाकिस्तान ने काश्मीर का प्रश्न उठाया था। और भारत ने उसका विरोध प्रकट किया था। इस बार यह प्रश्न पूरा जोर दे कर उठाया गया और पाक प्रधान मन्त्री ने ब्रिटेन पर यह आरोप लगाया कि उसने भारत को कुछ वायुयान देने के लिए समझौता किया है। पाक प्रधान मन्त्री ने अमेरिका की भी इसलिए आलोचना की कि उसने भारत को साढे बाईस करोड़ डालर का ऋण देने का प्रस्ताव किया है।

पाकिस्तान स्वंय अमेरिका की दुम के साथ सैन्य संगठन में बन्धा था और सहायता प्राप्त कर रहा था, परन्तु वह यह सहन नहीं कर सकता कि अमेरिका भारत के विकास में भी सहायक हो। यह प्रत्यक्ष ही पाक्स्तिान का भारत विरोधी रुख था। हकीकत यह थी कि पाकिस्तान यह देख कर भारत से ईर्ष्या कर रहा था कि भारत तटस्थ देश होने पर भी आगे बढ रहा था। और उसे सभी ओर से सहायता एव मैत्री पूर्ण सह्योग मिल रहा था। परन्तु पाकिस्तान तो अमेरिका के साथ सैनिक सन्धि में बधा हुआ था और वह समझता था कि उसे सहायता प्राप्त करने का हक है।

परन्तु राजनीति का एक शाश्वत सत्य है कि एक देश दूसरे देश को तभी सहायता देता है जब सहायता प्राप्त करने वाला देश उस योग्य होता है, परन्तु जो देश राजनीतिक शतरंज पर केवल मोहरा बनने की ही क्षमता रखता है, उसे उतनी ही सहायता प्राप्त होती है जितनी कि सहायता देने वाला आवश्यक समझता है। यह सत्य है कि ब्रिटेन यदि भारत को सहायता देना स्वीकार करता है तो केवल भारत से मैत्री रखने की दृष्टि से। और अमेरिका यदि भारत को सहायता देता है तो केवल इसलिए कि भारत में लोकतन्त्री भावनाओ को बल प्राप्त हो।