फैले पड़े थे। रह-रह कर वह कभी इस यन्त्र के और कभी उस यन्त्र के निकट जाता, ध्यान से देखता और फिर विकल भाव से कक्ष में घूमने लगता। यह गूढ पुरुष अमेरिका का विश्व विश्रुत वैज्ञानिक डा० जोजफ कैपलेन था। डा० कैपलेन अमेरिका के अन्तर्राष्ट्रीय भू-भौतिक वर्ष सम्बन्धी कार्यक्रम का संचालक और उसी कार्यक्रम से सम्बन्धित अमरीकी राष्ट्रीय समिति का अध्यक्ष था।
बहुत देर से वह इसी भाँति विक्षिप्त पुरुष की भाँति इधर से उधर तेजी से घूमता रहा। इसी समय किसी ने कस के द्वार पर आघात किया। डा० कैपलेन ने तत्काल ओटोमेटिक रिवालवर निकाल कर उसका घोड़ा दबाया और टेलीफोन जैसे एक यन्त्र में मुँह लगाकर पूछा---"कौन है?"
"मैं हूँ डाक्टर वानफ्रान, आप ने मुझे याद फर्माया था।
"ओ हो हो, ठहरो तनिक।" डाक्टर ने अपना रिवाल्वर जेब में डाल लिया और वही से एक बटन दबा कर कहा---"चले आओ डा० वानफ्रान।"
डाक्टर वानफ्रान प्रसिद्ध जर्मन वैज्ञानिक थे। और अब अमेरिकन नागरिक हो गए थे। जर्मनी का प्रसिद्ध बी० २ राकेट इन्हीं ने बनाया था, जिसे हिटलर ने इंगलैंड पर अन्तिम क्षणो में प्रयोग किया था। अमेरिका में आकर आपने द्रव ईधन बनाने में सफलता प्राप्त की थी। और द्रव ईधन से सम्बन्धित होने वाले राकेट तैयार किए थे। अब सन् १९५० से ये अमेरिकी सेना राकेट और प्रक्षेपणास्त्र सस्था के डाइरेक्टर थे।
डाक्टर वानफान ने हाथ मिलाते हुए, आगे बढ़ कर कहा--'मामला क्या है डाक्टर कैपलेन, आप तो बहुत ही परेशान हो रहे है।'
"ओह, खुदा की मार इन रूसियो पर, डाक्टर वानफ्रान, ऐसा मालूम होता है कि उन्होने हम अमेरिकनो पर जादू कर दिया है। हमारी अक्ल ही काम नहीं कर रही।"
"लेकिन हुआ क्या?"