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गया एक अत्यधिक साहस पूर्ण कार्य है, जो सूझबूझ द्वारा उठाया गया है। यह पृथ्वी के क्षेत्र से आगे बढकर विश्व की प्रत्यक्ष जानकारी प्राप्त करने का प्रथम अध्याय है। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य बाह्य आकाश मण्डल तथा सूर्य-नक्षत्रो व अन्तर्नक्षत्रीय माध्यमो के कणो और विकरणो के आकाशमण्डल पर प्रभाव की जानकारी प्राप्त करना है। उन्होने कहा था कि अमरीका इस भूभौतिक वर्ष मे २०० अनुसन्धानात्मक राकेट छोडेगा जो विविध प्रकार के होगे तथा पृथ्वी से १५ सौ मील दूर रह कर भूमध्य रेखा के ४० अश उत्तर दक्षिण पृथ्वी के चारो ओर घूम कर ६० मिनिट मे पृथ्वी की प्रदक्षिणा कर लेगे। दूर बीक्षण यन्त्रो व रेडियो विधियो के द्वारा इनके मार्ग का ज्ञान, निरीक्षण और नाप-तौल की जायगी। इस काम के लिये उत्तर से दक्षिण तक रेडियो-निरीक्षण केन्द्रो की व्यवस्था की गई और चिली, पनामा ब्रिटिश वैस्ट इन्डीज, क्यूवा तथा अमेरिका के अनेक स्थानो मे ऐसे निरीक्षण केन्द्र स्थापित किए गए।

इक्वेडर, चिली, अर्जेन्टाइना, दक्षिण अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, हवाई, दक्षिणी जापान, भारत और पाकिस्तान, मिश्र, दक्षिणी स्पेन, मास्को आदि मे दूरवीक्ष्ण यन्त्रो की सहायता से निरीक्षण केन्द्र स्थापित किए गए। भूमि पर निरीक्षण करने वालो का एक स्वयसेवक दल भी बनाया गया। आशा की गई कि इन उपग्रहो के द्वारा ऊपरी आकाश खण्ड की वायु की घनता, भूखण्ड की बनावट, ताप-दबाव, नक्षत्रो के अंशो तथा अल्ट्रा वायलेट विकिरण तथा ब्रह्माण्ड-किरणो का सही ज्ञान होगा।

व्योम विजय—

अन्तर्राष्ट्रीय भू-भौतिक वर्ष ने ससार को जो एक नई चीज दी वह है व्योम यात्रा द्वारा चन्द्रमा, मगल, शुक्र आदि ग्रहो तक पहुँचना और ५ लाख मील तक अनन्त अन्तरिक्ष मे यन्त्र भेजकर सौर-मण्डल के गूढतम रहस्यो को जानना। इस समय केवल इसका श्रीगणेश ही हुआ, परन्तु आशा होती है कि इस शताब्दी के अन्त तक मानव इस व्योम-यात्रा में सफल मनोरथ होगा।

राकेटो और प्रक्षेपणास्त्रो का विकास इस युग की सबसे अद्भुत और